ह.भ.प नामदेव शास्त्री महाराज यांचे अप्रतिम किर्तन ! namdev shastri maharaj kirtan
ह.भ.प नामदेव शास्त्री महाराज यांचे अप्रतिम किर्तन namdev shastri maharaj kirtan
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Пікірлер: 25
@AshaKorke-mh3ejАй бұрын
जय जय राम कृष्ण हरी सुंदर किर्तन
@user-eu7xn3if4r3 ай бұрын
प्रयत्न हेच परमेशवर
@dagadupawar17692 ай бұрын
Jai Hari Mauli
@dattalagad18454 ай бұрын
Very very good very very good very very nice very very faithful 🙏🙏🙏🙏🙏
@ramnathkarad38503 ай бұрын
सलाम आपल्या ज्ञान भक्ती व वैराग्याला महाराज जय भगवान बाबा
@harrieshkumarmunot23143 ай бұрын
खूप मार्मिक आणि अप्रतिम कीर्तन 🌹
@samalesamale4 ай бұрын
राम कृष्ण हरि महाराज
@prannimbalkar4 ай бұрын
12:15 भावनेचा विस्तार ( + भावार्थाचे गिरिवरु ) नवरसीं भरवीं सागरु । करवीं उचित रत्नांचे आगरु । भावार्थाचे गिरिवरु । निफजवीं माये ॥ ११ ॥ ज्ञानेश्वरी अध्याय १२
@shivajiraut80544 ай бұрын
जय गुरू देव शरण म शरणम
@pritisanap10363 ай бұрын
जय सद्गुरू माऊली
@pravinkhandagale-jh5lk3 ай бұрын
राम कृष्ण हरी
@rachanavilankar10934 ай бұрын
।। माऊली।।
@user-bv9hv9zr6u4 ай бұрын
राम कृष्ण हरि 🙏🙏🙏
@sunilabhale12834 ай бұрын
🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹jai Gurudev jai babaji
@shivajiraut80544 ай бұрын
जय गुरू द
@digamberbhamare49584 ай бұрын
Aavaj sunder aahe
@shivajiraut80544 ай бұрын
जय गुरू देव
@digamberbhamare49584 ай бұрын
mharaj chaal pasun 1:35 Mintache kiran aahe sampurn kirtan taka
@rachanavilankar10934 ай бұрын
।। रामकृष्ण हरि।।
@RajPatil-fq2dx3 ай бұрын
Very nice Maharaj wonderful but not a sitting kirtankar no sanskars of a kirtankar
@prannimbalkar4 ай бұрын
19:50 तयां तो प्रयत्नुचि एके वेळे । मग समग्र परब्रह्में फळे । जया पिकलेया रसु गळे । पूर्णतेचा ॥ १७६ ॥ ज्ञानेश्वरी अध्याय ७
@PradipSoundofficial
4 ай бұрын
राम कृष्ण हरी महाराज
@prannimbalkar
4 ай бұрын
@@PradipSoundofficial रामकृष्णहरि 🙏🙏🙏
@bajranggunjal5664 ай бұрын
राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी
Пікірлер: 25
जय जय राम कृष्ण हरी सुंदर किर्तन
प्रयत्न हेच परमेशवर
Jai Hari Mauli
Very very good very very good very very nice very very faithful 🙏🙏🙏🙏🙏
सलाम आपल्या ज्ञान भक्ती व वैराग्याला महाराज जय भगवान बाबा
खूप मार्मिक आणि अप्रतिम कीर्तन 🌹
राम कृष्ण हरि महाराज
12:15 भावनेचा विस्तार ( + भावार्थाचे गिरिवरु ) नवरसीं भरवीं सागरु । करवीं उचित रत्नांचे आगरु । भावार्थाचे गिरिवरु । निफजवीं माये ॥ ११ ॥ ज्ञानेश्वरी अध्याय १२
जय गुरू देव शरण म शरणम
जय सद्गुरू माऊली
राम कृष्ण हरी
।। माऊली।।
राम कृष्ण हरि 🙏🙏🙏
🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹jai Gurudev jai babaji
जय गुरू द
Aavaj sunder aahe
जय गुरू देव
mharaj chaal pasun 1:35 Mintache kiran aahe sampurn kirtan taka
।। रामकृष्ण हरि।।
Very nice Maharaj wonderful but not a sitting kirtankar no sanskars of a kirtankar
19:50 तयां तो प्रयत्नुचि एके वेळे । मग समग्र परब्रह्में फळे । जया पिकलेया रसु गळे । पूर्णतेचा ॥ १७६ ॥ ज्ञानेश्वरी अध्याय ७
@PradipSoundofficial
4 ай бұрын
राम कृष्ण हरी महाराज
@prannimbalkar
4 ай бұрын
@@PradipSoundofficial रामकृष्णहरि 🙏🙏🙏
राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी राम कृष्ण हरी
राम कृष्ण हरी