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चले चले हम निशिदिन अविरत, चले चले हम सतत चले | Sangh Geet - Geet Ganga
चले चले हम निशिदिन अविरत, चले चले हम सतत चले
कर्म करे हम निरलस पल पल, दिनकर सम हम सदा जले ॥
सोते नर के भाग्य सुप्त है, जागे नर का भाग्य जागता
उठने पर वह झठ से उठता, पग बढते ही वह भी बढता
आप्त वचन यह ऋषि मुनियो का, नर है नर का भाग्य विधाता
पुरखो की यह सीख समझकर, कर्मलीन हो सदा चले ॥
आर्यधर्म को पुन: प्राणमय, करने निकले घर से शंकर
केरल से केदारनाथ तक, घूमे गुमराहों पर जयकर
विचरे अचल वनांचल मरुथल, ऐक्य तत्व का शंख बजाकर
उस दिग्विजयी की गति लेकर, सतत चले कर्मण्य बने ॥
गाडी मेरा घर है कहकर, जिस ने की संचार तपस्या
मै नही तू ही तू यह जपकर, जिस ने की माँ की परिचर्या
जय ही जय की धुन से जिस ने, पूरी की जीवन की यात्रा
उस माधव के अनुचर हम नित, काम करे अविराम चले ॥
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Jay Shri Ram