श्रीमद्भगवद्गीता | अध्याय2 श्लोक69 | प्राकृतिक जीवन बेहोश जीवन होता है || आचर्य प्रशांत ||

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।69।।
सम्पूर्ण प्राणियों की जो रात (परमात्मा से विमुखता) है, उसमें संयमी मनुष्य जागता है, और जिसमें सब प्राणी जागते हैं (भोग और संग्रह में लगे रहते हैं), वह तत्त्व को जानने वाले मुनि की दृष्टि में रात है।
The self-restrained man keeps awake during that which is night for all creatures. That during which creatures keep awake, it is night to the seeing sage.
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जिस कर्मकांड और धारणों को सनातन धर्म मान बैठे हैं वो है ही नही, वास्तविक सनातन धर्म तो गीता उपनिषद..है
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Пікірлер: 1

  • @kyliegigi325
    @kyliegigi3253 күн бұрын

    🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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