श्रीमद भगवद गीता सार|Bhagawad Geeta| अध्याय 8, श्लोक 3 &4
आज के श्लोकों अध्याय 8. 3&4 के प्रश्न।👇
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श्रीभगवानुवाच
अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते |
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः || ३ ||
भगवान् ने कहा - अविनाशी और दिव्य जीव ब्रह्म कहलाता है और उसका नित्य स्वभाव अध्यात्म या आत्म कहलाता है | जीवों के भौतिक शरीर से सम्बन्धित गतिविधि कर्म या सकाम कर्म कहलाती है |
अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्र्चाधिदैवतम् |
अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर || ४ ||
हे देहधारियों में श्रेष्ठ! निरन्तर परिवर्तनशील यह भौतिक प्रकृति अधिभूत (भौतिक अभिव्यक्ति) कहलाती है | भगवान् का विराट रूप, जिसमें सूर्य तथा चन्द्र जैसे समस्त देवता सम्मिलित हैं, अधिदैव कहलाता है | तथा प्रत्येक देहधारी के हृदय में परमात्मा स्वरूप स्थित मैं परमेश्र्वर (यज्ञ का स्वामी) कहलाता हूँ |
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Hare Krishna prabhuji Nice best
हरे कृष्णा प्रभु जी नाइस वीडियो😁🙏🌺🌺☺