प्रीतम भरतवाण जी के जागर में झूम उठे बूंखाल मेले में || Bunkhal Mela 2023 || TRAVELWITHKAMAL

प्रीतम भरतवाण जी के जागर में झूम उठे बूंखाल मेले में || Bunkhal Mela 2023 || TRAVELWITHKAMAL
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Story Behind Bunkhaal Mela
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल मैं यूं तो कई मेले होते हैं लेकिन बुंखाल का मेला अपने आप में कई इतिहास और यादें संजोए हैं इस मेले की अपनी एक अलग मान्यता है इस मेले में पहले भारी मात्रा में भैंसा और बकरे की बलि प्रथा का चलन था क्षेत्र के लोगों का मानना था कि साक्षात काली माता बलि मांगती है
कल यानि 7 दिसम्बर को बूंखाल का मेला
हे यह मेला शनिवार के दिन ही होता है
पौड़ी जिले के थलीसैंण विकासखंड के बूंखाल में कालिंका माता मंदिर स्थित है। यह मंदिर लोगों की आस्था, विश्वास और श्रद्धा का एक बड़ा केंद्र है।
मंदिर में सदियों से चली बलि प्रथा, बूंखाल मेला इस क्षेत्र की हमेशा से पहचान रही है। साल 2014 से मंदिर में बलि प्रथा बंद होने के बाद पूजा-अर्चना, आरती, डोली यात्रा, कलश यात्रा और मेले के स्वरूप की भव्यता इसकी परिचायक है।
पौराणिक कथा
क्षेत्र के बुजुर्गों के अनुसार मंदिर का निर्माण करीब 1800 ईसवीं में किया गया, जो पत्थरों से तैयार किया था। वर्तमान में मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद आधुनिक रूप दे दिया है।
थलीसैंण के चोपड़ा गांव में एक लोहार परिवार में एक कन्या का जन्म हुआ, जो ग्वालों (पशु चुगान जाने वाले मित्र) के साथ बूंखाल में गाय चुगाने गई। जहां सभी छुपन-छुपाई खेल खेलने लगे। इसी बीच कुछ बच्चों ने उस कन्या को एक गड्ढे में छिपा दिया। मंदिर के पुजारी के मुताबिक गायों के खो जाने पर सभी बच्चे उन्हें खोजने चले जाते हैं। गड्ढे में छुपाई कन्या को वहीं भूल जाते हैं। काफी खोजबीन के बाद कोई पता नहीं चला। इसके बाद वह कन्या अपनी मां के सपने में आई। मां काली के रौद्र रूप दिखी कन्या ने हर वर्ष बलि दिए जाने पर मनोकानाएं पूर्ण करने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद चोपड़ा, नलई, गोदा, मलंद, मथग्यायूं, नौगांव आदि गांवों के ग्रामीणों ने कालिंका माता मंदिर बनाया।
मंदिर में पूजा-अर्चना की जिम्मेदारी गोदा के गोदियालों को दी गई, जो सनातन रूप से आज भी इसका निर्वहन कर रहे हैं। मंदिर वर्षभर श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। यहां विकास खंड खिर्सू, पाबौ, थलीसैंण, नैनीडांडा का मुख्य केंद्र भी है।
रूटप्लान बूंखाल कालिंका माता मंदिर पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे ज्यादा सुगम है। ऋषिकेश नजदीकी रेलवे स्टेशन है। यहां से करीब 100 किमी की दूरी बस से तय कर पौड़ी पहुंचा जा सकता है। यहां से दूसरे वाहनों से 60 किमी तय कर पौड़ी-खिर्सू होते हुए बूंखाल आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा कोटद्वार रूट से आने वाले श्रद्धालु पाबौ-पैठाणी-बूंखाल मोटर मार्ग के माध्यम से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। चुठानी-नलई-बूंखाल मोटर मार्ग भी बूंखाल आने-जाने के मार्गों में शामिल है।

Пікірлер: 5

  • @mamtarawat2934
    @mamtarawat29347 ай бұрын

    Bahut sunder

  • @user-qm5jw5ow1j
    @user-qm5jw5ow1j6 ай бұрын

  • @ashishrawat7266
    @ashishrawat72667 ай бұрын

    Nyc shoot bhai ji mja aa gya 😊

  • @rohitrwt8353
    @rohitrwt83537 ай бұрын

    Bhut bdiya lga bhai ji video dekh ke❤

  • @anunegi41
    @anunegi417 ай бұрын

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