Parbatta Vidhan Sabha | अपने विधान सभा के प्रत्याशी की सोच | शिक्षा | सीधी बात Navin Kumar से

बिहार और खासकर परवत्ता विधानसभा क्षेत्र की स्वास्थ्य व्यवस्था पर बात रखते परवत्ता विधानसभा के संघर्षशील युवा भावी प्रत्याशी नवीन कुमार।
बहुत ही बुनियादी और मानवीय सवाल को लेकर सरकार की खोखली स्वास्थ्य व्यवस्था का जनहित के लिए जागृत और आंख खोलने वाला सच्चाई प्रकट करने के लिए हम जनता के तरफ से और अपनी तरफ से हमारी ढेर सारी शुभकामनाएं आपके लक्ष्य के साथ है
हम एक साम शिक्षा के लिए एकजुट हों।
मुचकुंद दूबे
मुचकुंद दूबे आईएफ़एस यानी भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी पद पर रहने के बावजूद देश में शिक्षा को लेकर सबसे सजग माने जाते हैं। इनके ही प्रयास के कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में समान स्कूली शिक्षा कैसे लागू हो, इसके लिए एक आयोग का गठन किया था और इसकी जिम्मेवारी मुचकुंद दूबे को सौंप दी थी। आमतौर पर लेटलतीफ़ी के लिए मशहूर अन्य आयोगों के विपरीत श्री दूबे ने तय समय सीमा के अंदर अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी। लेकिन सरकार ने पूरी रिपोर्ट को ठंढे बस्ते में डाल दिया। परंतु श्री दूबे की मेहनत पूरी तरह बेकार नहीं गयी। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने उनके द्वारा बताये गये राह पर चलते हुए शिक्षा का अधिकार कानून बनाया। लिहाजा श्री दूबे को इस बात का श्रेय जाना ही चाहिए। यह बात अलग है कि वे स्वयं इस तथाकथित अधिकार के नाम पर दलितों और पिछड़ों के बच्चों के साथ हो रही हकमारी से व्यथित हैं। वे सुप्रीम कोर्ट में सरकार को चुनौती देने की योजना भी बना रहे हैं।
आज पूरे विश्व में शिक्षा एक बड़ा सवाल है। इसमें व्यापक बदलाव आये हैं। आईएफ़एस अधिकारी के रुप में आपने कई देशों में काम किया है। विश्व स्तर पर शिक्षा में आये बदलाव को आप कैसे महसूस करते हैं?
बात तो आपने सही कही है। वैश्वीकरण के बाद पूरे विश्व की शिक्षा में बदलाव आया है। इसकी कई सीमायें हैं। लेकिन भारत के संदर्भ में मैं यह अवश्य कहूँगा कि यहां शिक्षा के नाम पर वंचितों के साथ हकमारी की जा रही है। पूरे विश्व में एजुकेशन का यूनिवर्सलाइजेशन किया जा रहा है। यूनिवर्सलाइजेशन मतलब शिक्षा का समानीकरण। विकास के मामले में भारत से अपेक्षाकृत कम विकासशील देशों में भी समान स्कूली शिक्षा को महत्व दिया जा रहा है। लेकिन अपने भारत में इसके प्रति कोई गंभीर नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बदलाव यह भी आया है शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर। इसके मानक बदले हैं और नये लक्ष्य भी निर्धारित किये गये हैं। कई देशों में तो प्राइवेट सेक्टर को भी शिक्षा की गुणवत्ता बढाने की जिम्मेवारी दी जा रही है। यह परिवर्तन सचमुच में उल्लेखनीय है।
शिक्षा के क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर की घुसपैठ से वहीं खतरे सामने नहीं आयेंगे जो आज अपने देश में आ रहे हैं। मसलन शिक्षा का महंगा होना और बहुसंख्यकों का गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से दूर होना आदि।
नहीं, असल में जिन देशों में यह बदलाव लाया गया है, वहां पहले से ही समान स्कूली शिक्षा लागू है। इसलिए वहां अब यदि इस क्षेत्र में निजी निवेश किया जा रहा है तो इसका मूल स्वरुप समान स्कूली शिक्षा से अलग बिल्कुल भी नहीं है। वहां की सरकारों ने ऐसा इंतजाम कर रखा है कि स्कूल चाहे सरकारी हों या प्राइवेट, सभी बच्चों को पढाया जाएगा। फ़िर चाहे वे गरीब हों या अमीर। एक बात और शिक्षा के मामले में इसका समानीकरण सबसे महत्वपूर्ण शर्त है। ऐसा नहीं हो सकता कि आप शिक्षा को समान किये बगैर गुणवत्ता में सुधार कर सकें। खासकर निजी संस्थाओं के बुते तो बिल्कुल भी नहीं। यदि ऐसा हुआ तो यह एक भीषण दुर्घटना के रुप में सामने आयेगा। हमारे देश में यह सामने आ भी रहा है। जिस तरह से समाज में अलग-अलग श्रेणियां हैं, शिक्षा की भी अलग-अलग श्रेणी बन चुकी है। अलग-अलग बोर्ड इसके उदाहरण हैं।
आपकी अध्यक्षता में बने आयोग ने पूरे देश को राह दिखायी और देश में शिक्षा का अधिकार कानून बना। इस बारे में पूरी दास्तां बतायें।
आपने महत्वपूर्ण सवाल छेड़ दिया। बात पटना में ही शुरु हुई थी। मुझे एक संगोष्ठी में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था और इसके मूल में शिक्षा थी। श्रोताओं में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं बैठे थे। मैंने अपने संबोधन में समान स्कूली शिक्षा को लेकर बातें कही थी। संगोष्ठी समाप्त हुई और मैं दिल्ली वापस चला आया। करीब एक महीने के बाद मुख्यमंत्री के सचिव का फ़ोन आया। बात हुई तो कहने लगे कि वे भी बिहार में समान स्कूली शिक्षा लागू करना चाहते हैं। यह कैसे हो और इसकी रुप रेखा कैसी हो, इसके लिए एक आयोग का गठन किया जाय। इसकी जिम्मेवारी उन्होंने मुझे दे दी। मैंने तय समयसीमा के अंदर राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंप दी। मुझे विश्वास था कि मुख्यमंत्री ने जिस उच्च स्तर की संवेदनशीलता के साथ मुझे महती जिम्मेवारी सौंपी थी, वे उससे अधिक संवेदनशीलता के साथ मेरी अनुशंसाओं को लागू करेंगे। लेकिन मुझे निराशा मिली।
आपको क्या वजह लगती है इसकी?
मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह सब एक साजिश के तहत किया जा रहा है। एक ऐसी साजिश, जिसका शिकार देश के मासूम बच्चे हो रहे हैं। हालांकि मुझे अभी भी विश्वास है कि कोई न कोई राह जरुर निकलेगी। मुझे तो लगता है कि शिक्षा का सवाल राजनीतिक सवाल नहीं बन पाया है। जबतक राजनेताओं को यह महसूस नहीं होगा कि इसके जरिए वे सत्ता प्राप्ति कर सकते हैं तब तक कुछ भी होना मुश्किल है।
आपको नहीं लगता कि शिक्षा से वंचितों में बहुसंख्यक दलित-पिछड़े वर्ग के बच्चे हैं और नीतीश कुमार इन्हीं जाति-वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं?
आप सही कह रहे हैं। लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा कि जबतक वंचित वर्ग अपना राजनीतिक महत्व नहीं समझे
इसी तरह का आवाज पूर्व की भांति शिक्षा स्वास्थ्य बिजली की समस्या सरकारी तंत्र की समस्या को लेकर आप उठाते रहे हैं वह काफी सराहनीय रहा है
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Пікірлер: 1

  • @sonuprajapati11
    @sonuprajapati114 жыл бұрын

    Is baar hamlog ko yhi neta chahiye

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