मृत्यु के बाद क्या होता है What happens after death? | गरुड़ पुराण का परिचय

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मृत्यु के 24 घंटे बाद आत्मा अपने घर वापस क्यों आती है ? | Mrityu ke baad aatma wapas
अंतिम संस्कार के बाद मृत आत्मा के साथ क्या होता है ? | What Happens With Soul After...
1. व्यक्ति का जीवन उसके अपने पूर्व कर्मों से निर्धारित होता है। 2. किये गये शुभ व अशुभ कर्मों का फल अवश्य ही भोगना होगा। 3. यह जीवन जन्म मरण व पुनर्जन्म के चक्र में भ्रमण कर रहा है और लक्ष्य है परमात्मा में विलीन अर्थात मोक्ष प्राप्ति।
4. स्वर्ग व नरक अस्थाई है।
5. शरीर और आत्मा भिन्न हैं। शरीर नाशवान है और आत्मा अजर-अमर है। यह आत्मा ईश्वर का अंश है और अंश अपने अंशी में मिलने हेतु व्याकुल है।
6. चौरासी लाख योनियां हैं जिसमें जीव विचरण करता है।
7. इन सभी योनियों में मानव योनि श्रेष्ठ है क्योंकि केवल इसी योनि में सत्कर्म, ज्ञान व भक्ति संभव है।
8. मानव जन्म पाना सत्कर्मों से ही संभव है। यह जन्म दुर्लभ है। 9. सनातन धर्म के मार्ग पर चलना सतमार्ग है। गरुण पु- राण में आया है स्वयं का कल्याण और जगत हित ही जीवन का लक्ष्य है। मन सन्मार्ग में लगे तो कल्याण होगा। माया इस मन को भटका देती और व्यक्ति मेंआसुरा भाव उत्पन्न करता ह, जिसस वह अधम व पाप कर्म करता है और उसकी दुर्गति होती है।
10. पूर्वजों का अर्पण व तर्पण करना कल्याणकारी है।
11. दान, दया, पूजा, कर्मकांड, इन्द्रिय निग्रह आदि सभी सत्य आचरण की ओर ले जाते हैं।
12. मनुष्य को चाहिए कि वह अपने स्वयं के पास आए अर्थात अपनी आत्मा के पास आए। आत्मनिष्ठ रहें। इसी को आध्यात्म व उपासना कहा है।
13. मनुष्य षट्-ऋपुओं एवं पंच-विकारों से दूर रहे। इंद्रिय निग्रह करे तथा शुभ संकल्पयुक्त मन विकसित करे।
14. मनुष्य को स्वयं अपना उद्धार करना है, उसे स्वयं अपने शरीर व कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।
15. पापियों को भय भगवान का नहीं अपने दुष्कर्मों का रहे। व्यक्ति धर्म- भीरु बने।
16. गुरु, ग्रंथ, संत का सानिध्य तथा ईश्वर की शरणागति सतमार्ग पाने के शास्त्रोक्त मार्ग हैं।
17. पूजा-पाठ, भगवान के नाम का स्मरण, ज्ञान, ध्यान, कर्मकांड आदि आत्म शोधन के मार्ग हैं।
18. अपने सभी संसारिक कर्मों को भी ईश्वर को अर्पण करें।
एवं पंच-विकारों से दूर रहे। इंद्रिय निग्रह करे तथा शुभ संकल्पयुक्त मन विकसित करे।
19. मनुष्य दुष्कर्म न करे। दुष्कर्मों का पाप भुगतना पड़ेगा जो भयावह है और नरकगामी दुर्गति देगा।
20. सतमार्ग, धर्म मार्ग, सतकर्म, सत् विचार सनातन धर्म पुण्य देने वाले और मोक्षदायी है। पुराण में स्वर्ग-मोक्ष प्राप्ति व नरक से बचने के उपाय बताये हैं।
21. पा- पियों को यमराज और पुण्यात्माओं को धर्मराज न्याय देगा और उसकी दृष्टि से हम कुछ भी छिपा नहीं सकते। पापियों की इसलोक व परलोक में दुर्गतिहाता है। भगवान श्राविष्णु रक्षक एव पाप नाशक ह। पुण्यात्मायें मोक्ष पाती हैं या स्वर्ग आदि में जाती हैं जहां धर्मराज उनका आदर करते हैं।
22. शरीर और उसमें निहित आत्मा भिन्न है। शरीर की मृत्यु देहा- न्तरण करती है पर आत्मा अजर-अमर है।
23. मावन जीवन अत्यन्त अनमोल है। यह महापुण्यों के फलस्वरूप ही प्राप्त हो पाता है और श्रेष्ठतम योनि है। मोक्ष व स्वर्ग मानव योनि पाए बिना असंभव है। केवल मानव योनि में ही कर्म करना संभव है। अन्य सभी योनियां भोग योनियां हैं।
24. जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु होने पर पुनर्जन्म भी अपरिहार्य है।
25. सुख व दुःख दाता अन्य कोई नहीं मनुष्य स्वयं इसका कारण है।
26. तृष्णा से व्या- प्त मनुष्य नरक जाता है। जो मनुष्य तृष्णा से मुक्त है वही स्वर्ग जा पाता है।
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