कैसे थे पुराने गढ़वाली गीत | विलुप्त होती सांस्कृतिक परंपरा (बाद्दी गायन एवं नृत्य) |
A documentary about the " विलुप्त होती सांस्कृतिक परंपरा एक प्रयास" We R thankful to all these living legends to help us. इस सांस्कृतिक विरासत और विलुप्त होती अन्य परम्पराओ के लिए आपका प्रयास हमेशा एक अध्याय बनेगा इतिहास का। इन्ही शुभकामनाओं के साथ MGV DIGITAL
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सर सच में life आज तक ऐसी वीडियो पहली बार देख रहा हु,साथ मे आँखों से कुछ आंसू भी छलकने को तैयार हैं।जितने कलाकारों ने गाया और जिन्होंने डांस किया सच मे बहुत अनोखा था ।सर मुझे तो आज पता चल रहा है कि हमारी एक संस्कृति ऎसी भी है । धन्यवाद सर जी आपने इस video के माध्यम से हमें हमारी संस्कृति से रूबरू कराया।तहे दिल से आपका धन्यवाद सर जी।
हम लोगों ने इनको सम्मान नही दिया इस लिए ये दिल को छूने वाली कला आज लुप्त हो गई है
सस्कृति के नाम पर मजबूरी कहना ज्यादा तर्कसंगत होगा कलाकार और शिल्पकार जाति उत्तराखंड मे अछूत के रुप आज भी है जो मजबूर है आज भी इस काम को कर रहे है बाकी जो लोग सस्कृति का नाम देकर इस को प्रोत्साहन देने या दे रहे है वो आदमी के जन्म से या जाति काम न कर कलाकार और शिल्प कार का काम हुनर पर आधारित है जो कोई भी कर सकता है।
बहुत कुछ था जो अब नहीं और जो अब है वो आगे नहीं होगा 😔🙏🏻जय देवभूमि
आज नाच गानेवाले कितने भी महिला पुरूष हो इस परकार् के निरतया करके दिखाये तब तो मै भी मानु
बहुत सुंदर प्रस्तुति पुरानी यादें स्मर्ण हो गयी कम कम से 30साल से नहीं देखा यह बाद्यनृत्य को शायद अब देखने को मिलेगा नहीं सब पुरानी परम्परा बिलुप्त हो गयी या होनी की कगार पर है जिस सजन ने यहा विडियो डाली है बहुत धन्यवाद
इस बेडा गीत व बेडिण का नाच पहुत पुरानी याद आ रही है जो 1978 के समय मे था
विलुप्तप्राय पूर्णतः हो गई है विडम्बना ही है उनकी खाशियत समयानुसार तुरंत घटनाओं पर आधारित जीवन्त शब्दावली गीत गायन ही रहता था धार्मिक और लोक संगीत पर 🥰 🥰 परन्तु आज कल कैमरा और मोबाइल क्रांति ने घर घर शार्ट विडियो के नचाड पैदा कर दिये हैं बस लाइक कमेंट और स्टेटस के दूसरे रूप के।
आप को इस आखिरी पिड़ी के प्रस्तुत कर्ताओं को मै तैदिल से धनबाद करता हूं बहुत अछा लगा मन को छुंगया पुरानी यादें दिला दी आप ऐसे ही पोरूगारम दे ते रही आपको ढेर सारी शुभकामनाएं
संस्कृति वहीं जिसमें सभी को सम्मान बराबर
नमन है इन कलाकारों को 🙏अगर इस प्रकार के कलाकारों को हमारे समाज में सम्मान मिलता तो शायद आज ये संस्कृति हमारे समाज में जीवित होती पर इस प्रकार की कला को कला के नजरिए से nhi बल्कि निम्न जाति के नजरिए से देखा गाया आज ये कला अगर लिप्त हुए हैं तो इसके जिम्मेदार हम लोग खुद हैं
जो लोग तुम्हारा मनोरंजन करते थे उनके बाल उखाड़ कर प्रसाद बांटा जाता था वाह कितनी सुन्दर थी।तुम्हारी संस्कृति ऐसा व्यवहार लोग जानवर के साथ भी नहीं करते हैं।यदि इन कलाकारों को सम्मान मिलता तो आज भी ये संस्कृति जिन्दा रहती।
आप ने बचपन की याद दिला दी क्या सुन्दर दृश्य हुआ करते थे उन दिनो
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति एवं पुरानी जानकारी।अति सराहनीय कदम।
मुझे अपनी उत्तराखंड की महान संस्कृति एवं विरासत पर गर्व है।
हम ने इनकी कला का स्वाद लिया और खूब इंज्वाई की और हमने इनको इन्सान नहीं समझा और , शादी में हंसता माहौल बना कर के लास्ट में उनको सभी के खाना खाने के बाद उनको ठंडा खाना दिया जाता था , और बजाने के बाद उनका त्रिशकार किया जाता रहा , इज्जत नाम की कोई चीज ही नहीं रही इसी लिए उत्तराखंड की ये लोक सस्कृति बिलुप्त्त होती गई । आज लोग गांधी नाम पा लिया और ये लोक कला कार जो उनके साथ में नाचगान किया करते थे और , पांडव नृत्य, ढोल , दमाऊ बजा कर , केदार नृत्य कर दिल्ली लाल क़िले पर प्रथम प्रधान मंत्री जी श्री पण्डित नेहरू जी के साथ केदार नृत्य किया आज वो लोग अपने अपने घरों में बैठे हैं उनकी कला का कोई कहीं भी मोल भाऊ नहीं रहा। बहुत दुःख होता है जब कला कार के साथी , नाम पा कर कहीं का कहीं कहीं पहुंच जाता है , और पहुंचाने वाले अपनी अपनी कला को लेकर घर बैठ जाते हैं , परंतु उनको पहुंचाने वाला , उन कला कारों को कहीं मंच भी नहीं देता बहुत दुःख की बात इस से क्या हो सकती है । इसी लिए उत्तराखंड की लोक संस्कृति विलुप्त होती रही ।
Syd hum log beech me kahin batak gye the but Syd hum logo ko ehsaan ho rha h ki wahi din sbse acche the or mujhe khushi h iss baat ki ki hum dobara apne culture ko jinda rkhne ka prayas kr rhe h.. Jay uttarakhand
बहुत ही सुन्दर लोक गीत व मनमोहक लोक संगीत व नृत्य । यह कला व संस्कृति सदैव रहे ।धन्यवाद
बहुत सुंदर मनमोहक हमारे उत्तराखंड की संस्कृति जो आज बिलुप्ती की कगार पर है इस संस्कृति को बचाने का प्रयास कर देना चाहिए
जब हम छोटे थे तब यह बादी नृत्य होता था आज उसकी जगह डी जे ने ले लिया है हमारी संस्कृति धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है