कैसे दादा गुरु ने अपने गुरु से अलग होने का निर्णय किया। क्यों उनके संघ के साधुयों ने किया उनका विरोध
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Пікірлер: 33
जय जय गुरुदेव 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Namostu gurudev
महान थे हमारे दादा गुरु🙏🙏🙏
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरु देव आपको अनंतl अनंत बार नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु आपकी सदा जय हो जय हो जय हों 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरु देव
Jai ho
MERE GURUDEV APP KO KOTY KOTY VANDAN KARTE HE NAMAN KARTAE HE JAY KARA GURUDEV KA JAY JAY GURUDEV
इन सब बातों का वर्णन आचार्य शिव सागर जी या आचार्य ज्ञान सागर जी ने कहीं किया हुआ है?? इन सब बातों का वर्णन आचार्य विद्या सागर महाराज ने प्रवचन मे क्यों नहीं किया?? किस किताब मे लिखा है ये सब?? ऐसे कुछ भी controversial कहानियाँ कोई भी साधु सुनाएँगे, तो सच किया है उसका कैसे पता लगेगा? आचार्य शांतिसागार जी महाराज की परंपरा को रूढ़िवादी बोला जा रहे है मंच से- और सब तालियाँ बजा रहे है।आचार्य देशभूषण सागर जी ने बोलआ -“मेरा संघ तुम्हारे लायक़ नहीं है?” मतलब कुछ भी बोलते रहो । सत्य महाव्रत को रख दो ताक पे।
Pujya Gurudev aap Tathya ke anukul bat nahi karte ho Agam me kya likha kya nahi likha avm P.P.Aacharya Shree 108 Shiv sagarji Maharajji ne kya kaha vo kismet darj he kahiyega bhramak mat felayiyega.
विद्याधर जी को अजमेर में मुनि श्री ज्ञान सागर जी महाराज के पास जाने के लिए उनके सखा मारूति जी ने पैसे दिए थे।उनकी माता श्री ने नहीं दिये थे।
@jkj571990
9 күн бұрын
जब आचार्य देशभूषण जी के पास गए थे तब उनके सखा ने पैसे दिए थे। हालांकि मां ने पैसे दिए या नहीं, इस बारे में जानकारी नहीं है।
@Savejainism
9 күн бұрын
मारुति जी ने मात्र गांव से निकलते समय पैसे दिये थे।
क्या विवेक बुद्धी की व्याख्या किसी शास्त्र में दी हैं, गुरू को न मानना, गुरू की न मानना सम्यक्त्व हैं ?
बड़बोले-पने की हद्द है। आचार्य परंपरा पर प्रश्न चिन्ह उठा रहे हैं। शिव सागर जी परंपरा से बाध्य थे और वो आगम परंपरा नहीं थी, जिनवाणी के सामने बैठ के क्या अनाब -शनाब कहने की आदत हो गई है। मतलब शांति सागर जी, वीर सागर जी की आगम विरुद्ध क्रिया करते थे, गज़ब बकवास है, और गजब ताली पीटने वाले चेले। जो व्यक्ति पूर्वाचार्यों का और अपनी गुरु परम्परा का नहीं हुआ, वो क्या धर्म का होगा!
@Vastushastratoday
9 күн бұрын
Niklo yha se....अपने कुल की शुद्धि कराओ पहले। यहां ज्ञान न दो ज्यादा
@lifewithrohitjain7213
9 күн бұрын
महाराज जी ने इस वक्तव्य में कई बातें गलत और अपने मन से बना कर कर बोली है। अपने गुरु और दादा गुरु की महानता करने में उनके गुरु महाराज के बारे में और उनके संघ के बारे में गलत बोला। जो बाते सुधा सागर महाराज ने आचार्य शिव सागर ने ऐसा कहा करके बोली वो सब गलत लग रही है। ये सब इन्होंने कहा से पढ़ी या सुनी बताना चाहिए
@lifewithrohitjain7213
9 күн бұрын
जब आचार्य श्री विद्या सागर जी की मुनि दीक्षा हुई उससे पहले के कई उनकी ही उमर के मुनि हो चुके थे। आचार्य श्री कुंथु सागर जी और आचार्य श्री संभव सागर जी आज भी विराजमान है जो उनसे पहले के दीक्षित है।
@lifewithrohitjain7213
9 күн бұрын
ये बात सत्य है कि मुनि ज्ञान सागर जी दीक्षा से पूर्व विद्वान और शास्त्रों के ज्ञाता थे। लेकिन क्योंकि वो संघ की परम्परा का पालन नहीं करते थे इसलिए उन्हें आचार्य शिव सागर जी द्वारा निष्कासित किया गया था। इस बात को इस तरह बताना कि शिव सागर महाराज ने संघ की परंपराओं को आगम विरोधी मानते थे इसलिए ज्ञान सागर जी को अलग किया ये दुष्प्रचार है।
@ahinsacreators7328
9 күн бұрын
बड़बोले पन की सच में हद है आचार्य परंपरा पर प्रश्न चिन्ह उठाने जेसी तो कोई बात ही नही है । इसे प्रश्न तो आपकी mentality उठा रही है या फिर आपके मन में कोई बात है जो इनके प्रति इन शब्दों में निकल के आ रही है। जो जिसे सच लगता है वो वो ही कहेगा, अब मन मर्जी से बोल रहे है या उन्होंने भी अपने गुरु से सुना है ये उन्हीं को पता। फिर आप भी क्यू अनाब शनाब बोलकर अपना समय बर्बाद कर रहे है। महाराज ने तो नही कहा की आचार्य शांतिसागर जी और वीर सागर जी आगम विरुद्ध चर्या करते थे,, ये तो आपकी सोच बोल रही है। सब अपना अपना सच परोसेंगे सुधासागर जी जो जानते है वो बता रहे हैं,, आचार्य शिव सागर जी के बाद के साधु जो जानते है वो बताएंगे, दोनो के लिए वो ही सत्य है जो वो बताएंगे,, आपको कौनसा सत्य ग्रहण करना है आपकी मर्जी। लेकिन ये कहना की जो अपनी गुरु परंपरा का नही हुआ वो धर्म का क्या होगा इन पंक्तियों में आपका मुनि के प्रति द्वेष साफ साफ झलक रहा है। इनके अनुसार ये आचार्य शांतिसागर जी की परंपरा को जीवित रखे है और दुसरो के अनुसार उन्होंने आचार्य परंपरा जीवित रखी है। दोनो ही गुरु परंपरा का पालन कर रहे है,,, लेकिन क्या आप और हम जैसे श्रावक भी महावीर के द्वारा बताए अनेकांत की परंपरा का पालन कर रहें है? सोचने का विषय है। हम खुद माहोल खराब करके साधुओं को बदनाम करते है उनका प्रचार भी हम ही करते है तो दुष्प्रचार भी हम ही करते है।