कालू किर और पुलिस का खेल Part-1 गवरी/ मेनपुरिया की गवरी 28-8-2022 /मेवाड़ लोक नृत्य /Full HD Video

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Video Recording - Sanjay Choubisa
Video editing - bunty choubisa
you tube upload - sanjay upadhyay
गवरी नृत्य का इतिहास देखें हिंदी में _.......
जनसंचार के लोक माध्यम गवरी में लोक संस्कृति को प्रदर्शित करती हुई कई नृत्य नाटिकाएँ होती हैं. वादन, संवाद व प्रस्तुती करण के आधार पर मेवाड़ की गवरी सबसे अलग हैं. ये नृत्य नाटिकाएँ पौराणिक कथाओं, लोकगाथाओं एवं लोक जीवन की कई प्रकार की झांकियों पर आधारित होती हैं.
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गवरी का आयोजन रक्षाबंधन के दूसरे दिन से आरंभ होता हैं. गवरी के समय सारा वातावरण भक्तिमय हो जाता हैं. सभी गहरी आस्था में डूब जाते हैं. सामाजिक चेतना का आभास होता हैं. गवरी के माध्यम से हमारी लोकगाथाएँ जनता तक पहुचती हैं, जो लोग इन गाथाओं से अनभिज्ञ हैं, उनको इसकी जानकारी प्राप्त होती हैं. और जनता तक एक सकारात्मक संदेश इसके माध्यम से पहुचता हैं.
गवरी नृत्य की मान्यता व इतिहास (Recognition and history of Gawari dance)
गवरी नाम पार्वती के गौरी से लिया गया हैं. भील शिवजी के परम भक्त होते हैं तथा इन्हें अपना आराध्य देव मानते हैं उन्ही के सम्मान में गवरी मनाते हैं. दरअसल गवरी न सिर्फ एक नृत्य हैं बल्कि यह गीत संगीत वादन तथा नृत्य का सामूहिक स्वरूप हैं. इसकी गिनती राजस्थान के मुख्य लोक नृत्यों में की जाती हैं. तथा इन्हें लोक नाट्यों का मेरुनाट्य भी कहा जाता हैं.
भील समुदाय का यह धार्मिक उत्सव हैं जो वर्षा ऋतू में भाद्रपद माह में चालीस दिनों तक निरंतर चलता हैं. जिसमें सभी आयु वर्ग के लोग सम्मिलित होते हैं. गाँव के चौराहे में खुले स्थान पर इसका आयोजन किया जाता हैं. गवरी की मान्यता भगवान शिव और भस्मासुर राक्षस की कथा से जुड़ी हुई हैं.
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार कहते हैं जब भस्मासुर ने शिवजी के कड़े को प्राप्त कर उन्हें समाप्त करना चाहा तो उस समय विष्णु जी मोहिनी रूप धर आए तथा उन्होंने अपने रूप सौन्दर्य में असुर को फसाकर मार दिया. अपने आराध्य के प्रति सच्ची श्रद्धा को प्रकट करने तथा नई पीढ़ी को अतीत से जुड़े संस्मरण याद दिलाने के लिए गवरी का नृत्य किया जाता हैं.
गवरी में उपासक, आयोजक एवं अभिनेता केवल भील ही होते हैं. भीलों की एकता, दक्षता एवं ग्रामीण जीवन और आदिम जातीय जीवन के सम्बन्धों का परिचय इस नृत्य में देखने को मिलता हैं. जानने योग्य बात यह हैं कि इसमें स्त्रियाँ भाग नहीं लेती हैं पुरुष ही स्त्रियों के वस्त्र धारण कर उनका अभिनय करते हैं.
इस नृत्य में चार प्रकार के पात्र होते हैं शिव पार्वती व मानव, दानव और पशु पात्र. प्रत्येक भील समुदाय के व्यक्ति का यह कर्तव्य माना जाता हैं कि वह इस उत्सव में भाग ले. गवरी 40 दिनों तक किसी एक स्थान विशेष पर आयोजित न होकर घूम घूमकर भिन्न भिन्न स्थानों पर खेली जाती हैं. तथा अभिनय करने वाले पात्र चालीस दिन तक अपनी वेशभूषा को नहीं उतारते हैं.

Пікірлер: 3

  • @dhansinghranwat8909
    @dhansinghranwat8909 Жыл бұрын

    Nice menpuriya valo or badodiya valo

  • @foodking4484
    @foodking4484 Жыл бұрын

    Majavada👍

  • @TotalMixGallery

    @TotalMixGallery

    Жыл бұрын

    Ji ha

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