GUFA Ka Rahasya - Sudha Sagar Ji Maharaj Dwara - 2
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Пікірлер: 18
@rishabhkumarjain76327 жыл бұрын
A supernatural act of His Holiness Maharaj Shri Sudha Sagar Ji to bring these Manohari Paavan Jin Vimb from the Mandirji basement & make them available for darshan to all the visitors. Maharaaj Shri ko Shat shat Naman.... Shat Shat Naman for this aayojan.May such events occur again & again with the Blessings of Maharaj Shri & the whole Jain community get the opportunity to get such Divine Jin Darshan.
@soniyabothra6104
3 жыл бұрын
P p htt
@rishabhdevmandirseoni24826 жыл бұрын
जय हो चांदखेड़ी वाले चंदा प्रभु
@siddhaprekerti71165 жыл бұрын
जय श्री आदिनाथ जी जय श्री चंद्र प्रभु जी।
@kirangandhi99938 жыл бұрын
[6:12AM, 13/04/2016] एक दुजा: [2:28PM, 11/04/2016] एक दुजा: आत्मार्थी मुनिराज सोचते हैं कि मैं किस से क्या बात करूँ; क्योंकि जो भी इन आँखों से दिखाई देता है, वे सब शरीरादि तो जड़ हैं, मूर्तिक हैं, अचेतन हैं, कुछ समझते नहीं हैं और चेतन तो स्वयं ज्ञानस्वरूप है । जो योगी व्यवहार में सोता है, वह अपने आत्मा के हित के कार्य में जागता है और जो व्यवहार में जागता है, वह अपने कार्य में सोता है । इसप्रकार जानकर योगीजन समस्त व्यवहार को त्यागकर आत्मा का ध्यान करते हैं । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की परिभाषा बताते हुए आचार्यदेव कहते हैं कि जो जाने, सो ज्ञान; जो देखे, सो दर्शन और पुण्य और पाप का परिहार ही चारित्र है अथवा तत्त्वरुचि सम्यग्दर्शन, तत्त्व का ग्रहण सम्यग्ज्ञान एवं पुण्य-पाप का परिहार सम्यक्चारित्र है । तपरहित ज्ञान और ज्ञानरहित तप - दोनों ही अकार्य हैं, किसी काम के नहीं हैं, क्योंकि मुक्ति तो ज्ञानपूर्वक तप से होती है । ध्यान ही सर्वोत्कृष्ट तप है, पर ज्ञान-ध्यान से भ्रष्ट कुछ साधुजन कहते हैं कि इस काल में ध्यान नहीं होता, पर यह ठीक नहीं है; क्योंकि आज भी सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र के धनी साधुजन आत्मा का ध्यान कर लौकान्तिक देवपने को प्राप्त होते हैं और वहाँ से चयकर आगामी भव में निर्वाण की प्राप्ति करते हैं । पर जिनकी बुद्धि पापकर्म से मोहित है, वे जिनेन्द्रदेव तीर्थंकर का लिंग (वेष) धारण करके भी पाप करते हैं; वे पापी मोक्षमार्ग से च्युत ही हैं । निश्चयतप का अभिप्राय यह है कि जो योगी अपने आत्मा में अच्छी तरह लीन हो जाता है, वह निर्मलचरित्र योगी अवश्य निर्वाण की प्राप्ति करता है । इसप्रकार मुनिधर्म का विस्तृत वर्णन कर श्रावकधर्म की चर्चा करते हुए सबसे पहले निर्मल सम्यग्दर्शन को धारण करने की प्रेरणा देते हैं । कहते हैं कि अधिक कहने से क्या लाभ है ? मात्र इतना जान लो कि आज तक भूतकाल में जितने सिद्ध हुए हैं और भव� [2:28PM, 11/04/2016] एक दुजा: भविष्यकाल में भी जितने सिद्ध होंगे, वह सर्व सम्यग्दर्शन का ही माहात्म्य है । आगे कहते हैं कि जिन्होंने सर्वसिद्धि करनेवाले सम्यक्त्व को स्वप्न में भी मलिन नहीं किया है, वे ही धन्य हैं, वे ही कृतार्थ हैं, वे ही शूरवीर हैं और वे ही पंडित हैं । अन्त में मोक्षपाहुड का उपसंहार करते हुए आचार्य कहते हैं कि सबसे उत्तम पदार्थ निज शुद्धात्मा ही है, जो इसी देह में रह रहा है । अरहंतादि पंचपरमेष्ठी भी निजात्मा में ही रत हैं और सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र भी इसी आत्मा की अवस्थाएँ हैं; अत: मुझे तो एक आत्मा का ही शरण है । इसप्रकार इस अधिकार में मोक्ष और मोक्षमार्ग की चर्चा करते हुए स्वद्रव्य में रति करने का उपदेश दिया गया है तथा तत्त्वरुचि को सम्यग्दर्शन, तत्त्वग्रहण को सम्यग्ज्ञान एवं पुण्य-पाप के परिहार को सम्यक्चारित्र कहा गया है । अन्त में एकमात्र निज भगवान आत्मा की ही शरण में जाने की पावन प्रेरणा दी गई है । इस अधिकार में समागत कुछ महत्त्वपूर्ण सूक्तियाँ इसप्रकार हैं - (१) आदसहावे सुरओ जोई सो लहइ णिव्वाणं - आत्मस्वभाव में सुरत योगी निर्वाण का लाभ प्राप्त करता है । (२) परदव्वादो दुग्गइ सद्दव्वादो हु सुग्गई होइ - परद्रव्य के आश्रय से दुर्गति होती है और स्वद्रव्य के आश्रय से सुगति होती है । (३) तम्हा आदा हु मे सरणं - इसलिए मुझे एक आत्मा की ही शरण है । (४) [6:12AM, 13/04/2016] एक दुजा: अपने को होश में लाना,अपने निज तत्व को पहिचाना है,क्योकि अभी हम पर पदार्थों में आनंद मानकर उनमे लिप्त रहते है!हमारे होश में आते ही रोग का निवारण संतोष भाव में आकर हो जायेगा !जैसे तम के परमाणु प्रात: काल सूर्योदय होते ही प्रकाश में परिवर्तित हो जाते है, क्रोध/आक्रो- श के परमाणु वाचना से संतोष में परिवर्तित हो जाते है २-अनादि काल से अभी तक आपने अपने इष्ट,उपासक आराध्य पूज्य के समक्ष याचना पूर्वक विभिन्न वस्तुओं को माँगा ही है!विवाह में भी याचक होकर वधुपक्ष से अधिकांश लोग मांगते है!आप में इस याचक वृत्ति का त्याग हो,क्योकि के आप त्रिलोकनाथ हो याचक हो ही नही,आप शास्त्र वाचक हो,प्रार्थी हो सकते हो ,तुम दाता हो !जैन दर्शन दरिद्रों को नही उत्पन्न करता है !वह दाताओं को उत्पन्न करता है !जैनदर्शन का दिगंबर साधु आहारदान के लिए कटोरा लेकर याचना नही करता अपितु पड़गाहन द्वारा नवधा भक्ति से हीआहार ग्रहण करते है! एक भी भक्ति कम होने पर वह आहार नही करते!कोई श्रावक दिगंबर साधु को एक मुट्ठी भी आहार देता है तो वह भव्य है चाहे दिगंबर मुनि भव्य हो या नही हो !आचार्य अमित सागर ने लिखा है,समवशरण का ध्यान लगाने वाला जीव,तथा दिगं बर साधु को नवधा भक्ति से आहार देने वाला जीव नियम से ७/८ भव मे मोक्ष जाता है!लोहाचार्य जी ने लिखा है की सम्मेदशिखर की यात्रा करने वाला जीव अधिकत्तम ४८ भव में मुक्त हो जाता है !समवशरण का ध्यान लगाने वाला निकट भव्यता वाले जीव ही हो सकते है ! कुंद्कुंदाचार्य ,समान्तभद्राचार्य ने लिखा है जो नवधा भक्ति द्वारामुनि को आहार देता है तदुपरांत स्वयं भोजन करता है वह निर्वाण को प्राप्त करता है ! किसी भी ग्रन्थ के वाचना से पूर्व आचर्यों ने खा है की मंगलाचरण,निमित्त,हेतु,परिमाण, कर्ता और नाम का उल्लेख करना अत्यंत आवश्यक है ! मंगलाचरण- मंगल का अर्थ है जो पापो को नष्ट करे तथा उत्कृष्ट
@jigarshah6890
7 жыл бұрын
kiran gandhi ms
@manjujain44152 жыл бұрын
Jay Jay Gurudev Om hrim arham c Chandra Prabhu Jinendra namah
@mahabirjain7575 Жыл бұрын
Namostu bhagwan 🙏🙏
@rahuljainrahuljain91283 жыл бұрын
Sansar ke samast prani Agar Jain Shastra ko padh live Tu To Sabhi log samajh Jaaye ki Jain Dharm Kitna Prachin Hai Jay Ho Digambar Bhagwan
@shreyansjain87622 жыл бұрын
Jai ho gurudev ji
@SiddhamproductionNeerajjainavi3 жыл бұрын
Namostu. Bhagwan. Ji
@rahuljainrahuljain91283 жыл бұрын
Dev Aadi Dev Shri Rishabh Dev Bhagwan ki Jay Anadi nidhan Jain Dharm ki Jay Sant Shiromani Vidyasagar Maharaj Shri Sudha Sagar Ji Maharaj ki Jay
@neeleshsaraf34266 жыл бұрын
JIYNUM JIYTU SHASHNUM
@sarangshaha61867 жыл бұрын
unbelievable seen gosious
@ajitkumarjain71517 жыл бұрын
delhi cm is best ,
@kokilabensuthar7710
6 жыл бұрын
Nevedhya Jain shreemad rajchandra uastav ki zalak
@Deshsevak_7863 жыл бұрын
समाज को उचित दिशा में अग्रसर होने की जरूरत है न कि आडम्बर बाजी करने, अंधविश्वास करने और कीमती धन का अपव्यय करने के🙏🙏🙏 उत्तम क्षमा
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A supernatural act of His Holiness Maharaj Shri Sudha Sagar Ji to bring these Manohari Paavan Jin Vimb from the Mandirji basement & make them available for darshan to all the visitors. Maharaaj Shri ko Shat shat Naman.... Shat Shat Naman for this aayojan.May such events occur again & again with the Blessings of Maharaj Shri & the whole Jain community get the opportunity to get such Divine Jin Darshan.
@soniyabothra6104
3 жыл бұрын
P p htt
जय हो चांदखेड़ी वाले चंदा प्रभु
जय श्री आदिनाथ जी जय श्री चंद्र प्रभु जी।
[6:12AM, 13/04/2016] एक दुजा: [2:28PM, 11/04/2016] एक दुजा: आत्मार्थी मुनिराज सोचते हैं कि मैं किस से क्या बात करूँ; क्योंकि जो भी इन आँखों से दिखाई देता है, वे सब शरीरादि तो जड़ हैं, मूर्तिक हैं, अचेतन हैं, कुछ समझते नहीं हैं और चेतन तो स्वयं ज्ञानस्वरूप है । जो योगी व्यवहार में सोता है, वह अपने आत्मा के हित के कार्य में जागता है और जो व्यवहार में जागता है, वह अपने कार्य में सोता है । इसप्रकार जानकर योगीजन समस्त व्यवहार को त्यागकर आत्मा का ध्यान करते हैं । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की परिभाषा बताते हुए आचार्यदेव कहते हैं कि जो जाने, सो ज्ञान; जो देखे, सो दर्शन और पुण्य और पाप का परिहार ही चारित्र है अथवा तत्त्वरुचि सम्यग्दर्शन, तत्त्व का ग्रहण सम्यग्ज्ञान एवं पुण्य-पाप का परिहार सम्यक्चारित्र है । तपरहित ज्ञान और ज्ञानरहित तप - दोनों ही अकार्य हैं, किसी काम के नहीं हैं, क्योंकि मुक्ति तो ज्ञानपूर्वक तप से होती है । ध्यान ही सर्वोत्कृष्ट तप है, पर ज्ञान-ध्यान से भ्रष्ट कुछ साधुजन कहते हैं कि इस काल में ध्यान नहीं होता, पर यह ठीक नहीं है; क्योंकि आज भी सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र के धनी साधुजन आत्मा का ध्यान कर लौकान्तिक देवपने को प्राप्त होते हैं और वहाँ से चयकर आगामी भव में निर्वाण की प्राप्ति करते हैं । पर जिनकी बुद्धि पापकर्म से मोहित है, वे जिनेन्द्रदेव तीर्थंकर का लिंग (वेष) धारण करके भी पाप करते हैं; वे पापी मोक्षमार्ग से च्युत ही हैं । निश्चयतप का अभिप्राय यह है कि जो योगी अपने आत्मा में अच्छी तरह लीन हो जाता है, वह निर्मलचरित्र योगी अवश्य निर्वाण की प्राप्ति करता है । इसप्रकार मुनिधर्म का विस्तृत वर्णन कर श्रावकधर्म की चर्चा करते हुए सबसे पहले निर्मल सम्यग्दर्शन को धारण करने की प्रेरणा देते हैं । कहते हैं कि अधिक कहने से क्या लाभ है ? मात्र इतना जान लो कि आज तक भूतकाल में जितने सिद्ध हुए हैं और भव� [2:28PM, 11/04/2016] एक दुजा: भविष्यकाल में भी जितने सिद्ध होंगे, वह सर्व सम्यग्दर्शन का ही माहात्म्य है । आगे कहते हैं कि जिन्होंने सर्वसिद्धि करनेवाले सम्यक्त्व को स्वप्न में भी मलिन नहीं किया है, वे ही धन्य हैं, वे ही कृतार्थ हैं, वे ही शूरवीर हैं और वे ही पंडित हैं । अन्त में मोक्षपाहुड का उपसंहार करते हुए आचार्य कहते हैं कि सबसे उत्तम पदार्थ निज शुद्धात्मा ही है, जो इसी देह में रह रहा है । अरहंतादि पंचपरमेष्ठी भी निजात्मा में ही रत हैं और सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र भी इसी आत्मा की अवस्थाएँ हैं; अत: मुझे तो एक आत्मा का ही शरण है । इसप्रकार इस अधिकार में मोक्ष और मोक्षमार्ग की चर्चा करते हुए स्वद्रव्य में रति करने का उपदेश दिया गया है तथा तत्त्वरुचि को सम्यग्दर्शन, तत्त्वग्रहण को सम्यग्ज्ञान एवं पुण्य-पाप के परिहार को सम्यक्चारित्र कहा गया है । अन्त में एकमात्र निज भगवान आत्मा की ही शरण में जाने की पावन प्रेरणा दी गई है । इस अधिकार में समागत कुछ महत्त्वपूर्ण सूक्तियाँ इसप्रकार हैं - (१) आदसहावे सुरओ जोई सो लहइ णिव्वाणं - आत्मस्वभाव में सुरत योगी निर्वाण का लाभ प्राप्त करता है । (२) परदव्वादो दुग्गइ सद्दव्वादो हु सुग्गई होइ - परद्रव्य के आश्रय से दुर्गति होती है और स्वद्रव्य के आश्रय से सुगति होती है । (३) तम्हा आदा हु मे सरणं - इसलिए मुझे एक आत्मा की ही शरण है । (४) [6:12AM, 13/04/2016] एक दुजा: अपने को होश में लाना,अपने निज तत्व को पहिचाना है,क्योकि अभी हम पर पदार्थों में आनंद मानकर उनमे लिप्त रहते है!हमारे होश में आते ही रोग का निवारण संतोष भाव में आकर हो जायेगा !जैसे तम के परमाणु प्रात: काल सूर्योदय होते ही प्रकाश में परिवर्तित हो जाते है, क्रोध/आक्रो- श के परमाणु वाचना से संतोष में परिवर्तित हो जाते है २-अनादि काल से अभी तक आपने अपने इष्ट,उपासक आराध्य पूज्य के समक्ष याचना पूर्वक विभिन्न वस्तुओं को माँगा ही है!विवाह में भी याचक होकर वधुपक्ष से अधिकांश लोग मांगते है!आप में इस याचक वृत्ति का त्याग हो,क्योकि के आप त्रिलोकनाथ हो याचक हो ही नही,आप शास्त्र वाचक हो,प्रार्थी हो सकते हो ,तुम दाता हो !जैन दर्शन दरिद्रों को नही उत्पन्न करता है !वह दाताओं को उत्पन्न करता है !जैनदर्शन का दिगंबर साधु आहारदान के लिए कटोरा लेकर याचना नही करता अपितु पड़गाहन द्वारा नवधा भक्ति से हीआहार ग्रहण करते है! एक भी भक्ति कम होने पर वह आहार नही करते!कोई श्रावक दिगंबर साधु को एक मुट्ठी भी आहार देता है तो वह भव्य है चाहे दिगंबर मुनि भव्य हो या नही हो !आचार्य अमित सागर ने लिखा है,समवशरण का ध्यान लगाने वाला जीव,तथा दिगं बर साधु को नवधा भक्ति से आहार देने वाला जीव नियम से ७/८ भव मे मोक्ष जाता है!लोहाचार्य जी ने लिखा है की सम्मेदशिखर की यात्रा करने वाला जीव अधिकत्तम ४८ भव में मुक्त हो जाता है !समवशरण का ध्यान लगाने वाला निकट भव्यता वाले जीव ही हो सकते है ! कुंद्कुंदाचार्य ,समान्तभद्राचार्य ने लिखा है जो नवधा भक्ति द्वारामुनि को आहार देता है तदुपरांत स्वयं भोजन करता है वह निर्वाण को प्राप्त करता है ! किसी भी ग्रन्थ के वाचना से पूर्व आचर्यों ने खा है की मंगलाचरण,निमित्त,हेतु,परिमाण, कर्ता और नाम का उल्लेख करना अत्यंत आवश्यक है ! मंगलाचरण- मंगल का अर्थ है जो पापो को नष्ट करे तथा उत्कृष्ट
@jigarshah6890
7 жыл бұрын
kiran gandhi ms
Jay Jay Gurudev Om hrim arham c Chandra Prabhu Jinendra namah
Namostu bhagwan 🙏🙏
Sansar ke samast prani Agar Jain Shastra ko padh live Tu To Sabhi log samajh Jaaye ki Jain Dharm Kitna Prachin Hai Jay Ho Digambar Bhagwan
Jai ho gurudev ji
Namostu. Bhagwan. Ji
Dev Aadi Dev Shri Rishabh Dev Bhagwan ki Jay Anadi nidhan Jain Dharm ki Jay Sant Shiromani Vidyasagar Maharaj Shri Sudha Sagar Ji Maharaj ki Jay
JIYNUM JIYTU SHASHNUM
unbelievable seen gosious
delhi cm is best ,
@kokilabensuthar7710
6 жыл бұрын
Nevedhya Jain shreemad rajchandra uastav ki zalak
समाज को उचित दिशा में अग्रसर होने की जरूरत है न कि आडम्बर बाजी करने, अंधविश्वास करने और कीमती धन का अपव्यय करने के🙏🙏🙏 उत्तम क्षमा
@nitinjain8114
Жыл бұрын
apne aadamver ki soch Maharaj ji sacche sadu hai