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गीतोक्त ज्ञान ही विशुद्ध मनुस्मृति

गीतोक्त ज्ञान ही विशुद्ध मनुस्मृति- गीता आदिमानव महाराज मनु से भी पूर्व प्रकट हुई है- ‘इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।’ (४/१) अर्जुन! इस अविनाशी योग को मैंने कल्प के आदि में सूर्य से कहा तथा सूर्य ने मनु से कहा। मनु ने उसे श्रवण कर अपनी याददाश्त में धारण किया; क्योंकि श्रवण की गयी वस्तु मन की स्मृति में ही रखी जा सकती है। इसी को मनु ने राजा इक्ष्वाकु से कहा। इक्ष्वाकु से राजर्षियों ने जाना और इस महत्त्वपूर्ण काल से यह अविनाशी योग इसी पृथ्वी में लुप्त हो गया। आरम्भ में कहने और श्रवण करने की परम्परा थी। लिखा भी जा सकता है- ऐसी कल्पना नहीं थी। मनु महाराज ने इसे मानसिक स्मृति में धारण किया तथा स्मृति की परम्परा दी। इसलिये यह गीतोक्त ज्ञान ही विशुद्ध मनुस्मृति है।...
Place: Bhayandar, Mumbai
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