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DR.LAJPAT RAIMEHRA JIEXPLAINING THE SECRETS OF NEUROTHERAPY TO THE STUDENTS

हमारे सरीर में हर जगह के सेल्स सभी एक समय के बाद खत्म होते रहते हैं ओर दुबारा बनते रहते हैं।ये काम साथ साथ चलते हैं शरीर में लेकिन जब ये दोनों काम का तालमेल साथ साथ नही रहता तो शरीर में बीमारी आती हैअगर सेल्स बनने की गति ज्यादा ओर खत्म होने की गति कम हो तो वह tumour या केंसर बन जाता है 1cu mm हड्डी को को खत्म होने मे 8 दिन लगते हैं उतनी ही हड्डी को बनने में 45 दिन लगते हैंन्यूरोथेरपी में देखा गया है अगर रक्त में एसिड की मात्रा बढ़ जाए तो हड्डियो के किनारे घिसने लगते हैं तो हड्डियो में degenration होने लगता है हड्डी को दुबारा बनाने के रो मेटेरियल कैल्शियम है आजकल लोग केल्शियम भी ले रहे हैं।फिर भी जॉइंट्स कमजोर है इसका कारण पेट मैं खाने का पाचन सही से न होना।
न्यूरोथेरपी में जोड़ो का इलाज कैसे करते हैं न्यूरोथेरपी में जोड़ो का ईलाज हैंइस थेरेपी से हम जोड़ो के रोग ठीक कर सकते हैं।
न्यूरोथेरपी में हम ऑर्गन्स ओर ग्लांड्स को स्टिमुलेशन दे कर केमिकल ओर हार्मोन्स को शरीर में बना कर उनके द्वारा बिमारी का इलाज किया जाता है।हम एड्रेनल कोर्टेक्स ओर प्रोस्टाग्लैंडीन को स्टिमुलेशन देकर इंफ्लामेशन को खत्म करते हैंन्यूरोथेरपी में हम सरीर के एसिड अल्कली का संतुलन सुधार देते हैं जिससे मासपेशियों का लचीलापन वापस आ जाता हैऑस्टियोपोरोसिस के लिए हम पाचन को ठीक करते हैं।न्यूरोथेरपी के कुछ फॉर्मूले जिनका उपयोग करके हम जोड़ के हर रोग को ठीक कर सकते हैं और ऑपरेशन को भी टाल सकते हैं
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Neurotherapy द्वारा हड्डियो की बीमारी का इलाज
क्या आप घुटनो के दर्द , अर्थराइटिस, रहमोटोइड अर्थराइटिस, जॉइंट्स पैन,हड्डियो का घिस जाना ऐसी किसी समस्या से परेसान हैं तो न्यूरोथेरपी आपके लिए वरदान है।जोड़ में दर्द के कुछ कारणों से हड्डी के आसपास कोई मार लगी हो,लेकिन उसका दर्द कई साल के बाद वापस आता हैं-हड्डी या आसपास के टिसू घिस जाने से इसका एक कारण यूरिक एसिड का बढ़ जाना-यूरिक एसिड की मात्रा अधिक हो जाय तो उसे गठिया कहते हैं।-इंफ्लामेशन के बाद या जोड़ो के ज्यादा उपयोग से घुटनों की सायनोवियल फ्लूइड का खत्म हो जाना,जिससे हड्डिया एक दूसरे से घिसती हैं और उनके किनारे टूट जाते है ये भी एक तरह का डिजेनरेशन हैं।अगर ऑटोइम्यूनडिसऑर्डर हो तो हमारे सरीर के सेल्स हमे खुद ही मारने लगते हैं जिससे सरीर में इंफ्लामेशन आ जाता है इससे जॉइंट्स के सिनोविल मेम्ब्रेन में इंफ्लामेशन आ जाता हैं।इसे सिनोविटिस कहते हैं ऐसे लोगो को घुटने में दर्द के साथ गर्मी महसूस होगी-फीवर आने के बाद भी जोड़ो में दर्द आ जाता है।-ऑटोइम्यून डिसऑर्डर का एक रूप RA भी है। इससे सरीर के सारे जोड़ो मैं सूजन आ जाती है।
न्यूरोथेरपी द्वारा शरीर मे केल्शियम की कमी को कैसे दूर करे
न्यूरोथेरपी एक अद्भुत विद्या है जिसमें बिना किसी दवा का प्रयोग किये बिना हम शरीर मे कैल्शियम की मात्रा को बढ़ा देते हैं।न्यूरोथेरपी में हम केल्शियम के लिए 125 DCC फार्मूला देते हैं।ये फार्मूला किडनी के कार्य को भी ठीक करता है।और पाचन ओर अवसोसन में भी मदद करता हैं।125 DCC का फंक्शन ये एक ऐसा हार्मोन हैं जिसका काम कैल्शियम का अवसोसन कराना।इसका रॉ मैटेरियल कोलेस्ट्रॉल है, ये स्टेरोल वंश का हैं।इसे स्टेरॉयड हार्मोन कहते हैं।125dcc के काम को समझने के लिए हमे ये समझना होगा शरीर में कैल्शियम कैसे अंदर पहुचता हैं और कैसे इसका निकास होता हैं।भोजन में दूध दही केला पालक आदि खाने सेकैल्शिम मिलती है, इसका अवसोसन इलियम के विल्लाई द्वारा किया जाता हैं,ओर वहा से ये रक्त में मिल जाता है, लेकिन इलियम में इसका अवसोसन तब ही होगा,जब रक्त में प्रयाप्त मात्रा में 125dcc हो, नही तो सारा का सारा केल्शियम मल के द्वारा बाहर निकल जाएगा।
ओर एक बात ये भी हैं समझो रक्त में कैल्शियम की मात्रा ठीक है लेकिन 125dcc नही है।तो किडनी में जब रक्त की चीजें फ़िल्टर होती हैं तो उनकी tubules कैल्शियम को रिअब्सॉर्ब नही करेगी।तो रक्त का केल्शियम पेसाब द्वारा निकल जाएगा।125dcc दो विभिन्न अंगो पर प्रभाव डालकर रक्त मे केल्शियम की मात्रा को बढ़ाता है।एक तो ये इलियम के विल्ली की सेल्स पर प्रभाव डालता हैं ताकि ये केल्शियम ओर फोस्फेट का अवसोसन करे जिसके लिए ये इंटेस्टाइन के सेल्स में खास किस्म के कैल्शियम बाइंडिंग प्रोटिन का निर्माण करता है।जो केल्शियम के सेल्स को सिटोप्लासम के अंदर पहुचाने में मददगार है। इस प्रोटीन को तैयार करने के लिए 125dcc को दो दिन लगते हैं।लेकिन125dcc निकल जाने के बाद ये प्रोटीन सेल्स के अंदर कई सप्ताह रहता है।इस केल्शियम बाइंडिंग प्रोटीन को बनने में 48 घंटे लगते है ,अगर दुबारा मरीज को 125dcc फार्मूला देना ह तो एक दिन छोड़कर दो।।
125DCC शरीर में कैसे बनता है
हमारे सरीर में कैल्शियम के अवसोसन तथा उपयोग मे विटामिन डी का महत्वपूर्ण स्थान है।हमारी चमड़ी के नीचे 7hcc केमिकल जमा होता हैं।जो बिटामिन d क निष्क्रिय रूप हैं, सूरज की किरण पड़ने पर यह D3 के रूप में बदलकर रक्त में मिल जाता है।जब ये रक्त लिवर में पहुचता ह तो लिवर उसे 25HCC में बदल देता है, जो विटामिन डी का एक रूप है, इससे विटामिन डी की जितनी जरूरत है उतनी मात्रा मे लिवर से निकलेगा बाकी लिवर मे स्टोर रहेगा। भविष्य में काम आने के लिए।
जब ये रक्त पैराथाइरॉइड ग्लैंड मे पहुँचता है ओर अगर रक्त में कैल्शियम की मात्रा 9 -11 mg/dl से कम हो तो पैराथाइरॉइड ग्लैंड से पार्थोर्मोन हार्मोन निकलेगा ये सब रक्त में घूमते हुई किडनी में पहुचती हैं,तब किडनी 25hcc को 125dcc हार्मोन मे बदल देती हैं।इस काम के लिए PTH का होना जरूरी है
PTH के बिना 125DCC का उत्पादन नही हो सकता
संछेप में
सूर्य की किरणें -चमड़ी -7HCC
7HCC -रक्त द्वारा -लिवर -25HCC
25HCC-रक्त द्वारा -पैराथाइरॉइड ग्रन्थि-PTH निकलेगा।
25HCC +PTH-रक्त द्वारा-किडनी -125DCC.
सबसे मुख्य बात ये है कि हड्डियां की मजबूती के लिए

Пікірлер: 2

  • @mrdocumentwildlife
    @mrdocumentwildlifeАй бұрын

    Millions of salutes to the father of Neurotherapy, Dr. Lajpat Rai Mehra 🙏 You have developed a medical system for the entire human being which is incomparable to the entire world. This medical system created by you in the field of health is a boon for the entire human being. Lots of respect 🙏

  • @MrHindiShorts
    @MrHindiShortsАй бұрын

    🙏

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