Dargah Sharif Par Dua Mangne Ka Tarika | Mazar Sharif Par Fatiha Padhne Ka Tarika | DARGAH
Dargah Sharif Par Dua Mangne Ka Tarika | Mazar Sharif Par Fatiha Padhne Ka Tarika | DARGAH
aaj mai apko ye bataunga ki agar ap kisi allah ke wali ki dargah sharif ya mazar sharif par jate hai to waha apko kya padhna chahiye aur ap ko dargah sharif par fatiha kis tarha padhna chahiye aur mazar sharif par dua mangne ka sahi tarika kya hai sath me ye bhi bataunga ki apko dargah sharif me kis tarha khade hona chahiye
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hussaini mashrab ek aisa youtube channel hai jis par apko namaz ka tarika paki aur napaki ke masail aur rozana pesh aane wale masail ke bare me bataya jata hai
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#dargah #mazar #hussainimashrab
Пікірлер: 164
Subhanallah bohot acchi video hai bhai
मैंने जो भी पड़ा है ए अल्लाह अपने हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदके
Subhan Allah Bahut acche se App se samjhaya
Maulana aap bahut sahi ho
@xenomorph666x
Жыл бұрын
हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह.. ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ? जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा. मगर अल्लाह फरमाता है : देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता. (सुरह जुमर, आयत नंबर 3) गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो. (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62) अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है. अल्लाह फरमाता है: और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे. (सुरह युनूस, आयत 105-106) मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे. क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है : और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते. (सुरह फातिर, आयत 22 ) ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो. (सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5) जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे. (सुरह नहल आयत नंबर 20-21) क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं. और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया : "यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया" आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे. (सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
Aap ne dua mangne ka bahot accha tarika bataya hai subhanallah
Subhan Allah
Mashallah kattar sunni hai aap😊
Ameen summa ameen ❤❤❤beshaq subhanallah
Main jo kuchh mangti hu bus Allah se mangti hu NAMAZ insan par farz hai inshaallah Allah har Murad Puri kar ta hai
Amin summa amin🤲🏻
Subhanallah yeh Jo batate Ho mashallah
@xenomorph666x
Жыл бұрын
हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह.. ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ? जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा. मगर अल्लाह फरमाता है : देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता. (सुरह जुमर, आयत नंबर 3) गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो. (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62) अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है. अल्लाह फरमाता है: और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे. (सुरह युनूस, आयत 105-106) मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे. क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है : और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते. (सुरह फातिर, आयत 22 ) ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो. (सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5) जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे. (सुरह नहल आयत नंबर 20-21) क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं. और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया : "यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया" आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे. (सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
Mashallah...ameen
Masha Allah
Inshaallah ❤️🤲👌
Subhan Allaha
Inshaallah ❤️🤲🕋
माशा अल्लाह ❤
Aameen
Beshak subhan allah
@xenomorph666x
Жыл бұрын
हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह.. ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ? जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा. मगर अल्लाह फरमाता है : देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता. (सुरह जुमर, आयत नंबर 3) गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो. (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62) अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है. अल्लाह फरमाता है: और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे. (सुरह युनूस, आयत 105-106) मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे. क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है : और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते. (सुरह फातिर, आयत 22 ) ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो. (सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5) जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे. (सुरह नहल आयत नंबर 20-21) क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं. और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया : "यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया" आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे. (सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
Namaj pad ke allah se maago jo magna h us ke siwa koi nahi wo ek hi h Puri duniya ka badsha allah ek h
Shubanallah ❣️❣️❣️ Mashallah ❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️
Subhanallah 🌹🌹
Jazhakallah hazrat
Amin
Masha allah
Subhanallah 🌹🤲🌹
@xenomorph666x
Жыл бұрын
हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह.. ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ? जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा. मगर अल्लाह फरमाता है : देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता. (सुरह जुमर, आयत नंबर 3) गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो. (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62) अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है. अल्लाह फरमाता है: और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे. (सुरह युनूस, आयत 105-106) मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे. क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है : और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते. (सुरह फातिर, आयत 22 ) ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो. (सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5) जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे. (सुरह नहल आयत नंबर 20-21) क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं. और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया : "यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया" आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे. (सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
Ameen summa ameen ❤
Aameen sumaameen
Assalam walikum aap log plzz dua karyi ga me pass ho jao kyu ke mean bams 1 yr me 1 subject aur 2 me all to all me supply aa gye h aur meni bhuth mehnt ke the phir bhi mere supply aa gye h plzzz dua karyi me pass ho jao
DUA MEIN YAAD RAKHE JANAB 😢😢😢
masa allah ❤️❤️as
Subhanallah
Be shaqu sahi hain
@xenomorph666x
Жыл бұрын
हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह.. ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ? जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा. मगर अल्लाह फरमाता है : देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता. (सुरह जुमर, आयत नंबर 3) गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो. (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62) अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है. अल्लाह फरमाता है: और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे. (सुरह युनूस, आयत 105-106) मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे. क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है : और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते. (सुरह फातिर, आयत 22 ) ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो. (सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5) जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे. (सुरह नहल आयत नंबर 20-21) क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं. और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया : "यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया" आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे. (सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
Amin summaamin
Ameen summa Ameen
Aamin summa ameen ❤️🤲🕋
❤ ameen summa ameen ❤
𝒃𝒆𝒔𝒉𝒂𝒌 𝒔𝒖𝒃𝒉𝒂𝒏 𝒂𝒍𝒍𝒉𝒂
@xenomorph666x
Жыл бұрын
हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह.. ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ? जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा. मगर अल्लाह फरमाता है : देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता. (सुरह जुमर, आयत नंबर 3) गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो. (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62) अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है. अल्लाह फरमाता है: और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे. (सुरह युनूस, आयत 105-106) मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे. क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है : और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते. (सुरह फातिर, आयत 22 ) ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो. (सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5) जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे. (सुरह नहल आयत नंबर 20-21) क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं. और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया : "यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया" आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे. (सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
Super ❤
Besahk❤❤
AMEEN
Subhanallah Azharalikhan
@xenomorph666x
Жыл бұрын
हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह.. ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ? जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा. मगर अल्लाह फरमाता है : देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता. (सुरह जुमर, आयत नंबर 3) गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो. (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62) अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है. अल्लाह फरमाता है: और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे. (सुरह युनूस, आयत 105-106) मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे. क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है : और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते. (सुरह फातिर, आयत 22 ) ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो. (सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5) जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे. (सुरह नहल आयत नंबर 20-21) क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं. और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया : "यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया" आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे. (सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
Mashallah ❤️
@xenomorph666x
Жыл бұрын
हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह.. ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ? जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा. मगर अल्लाह फरमाता है : देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता. (सुरह जुमर, आयत नंबर 3) गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो. (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62) अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है. अल्लाह फरमाता है: और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे. (सुरह युनूस, आयत 105-106) मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे. क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है : और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते. (सुरह फातिर, आयत 22 ) ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो. (सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5) जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे. (सुरह नहल आयत नंबर 20-21) क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं. और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया : "यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया" आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे. (सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
Ameen❤❤
Beshak
Ameen.suma.ameen.🤲🤲🤲❤😭
Ameen
Ameen summa ameen
@xenomorph666x
Жыл бұрын
हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह.. ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ? जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा. मगर अल्लाह फरमाता है : देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता. (सुरह जुमर, आयत नंबर 3) गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो. (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62) अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है. अल्लाह फरमाता है: और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे. (सुरह युनूस, आयत 105-106) मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे. क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है : और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते. (सुरह फातिर, आयत 22 ) ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो. (सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5) जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे. (सुरह नहल आयत नंबर 20-21) क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं. और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया : "यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया" आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे. (सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
Ya waris
Kya Us Jagah Jana Sahi h Jahan Shirk Or Bidat hota ho ??????
ਆਮੀਨ🌙
🙌🙌🙌🙌🙌🙌
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹
Besaq Allah aur uske rasool per iman per khatma ata farmaye
Jo bhi mango allha se Mango wahi denye wala hai
AaAAMIN
Ya ALLAH walo aise galat logo ki bato se bacho or ALLAH k ghar masjid jao namazo ki pabandi karo Allah ko sajda karo or sirf ALLAH se hi gidgida k mango , or apne aap ko shirk se bachao
Asalamualikum Molana sahb ALLAH farmatia ha kon ha Jo MRI siwa ek makhi TQ Bana Sakta ha aur osma Jaan dal Sakta ha Agar ha tuo be shak oski b ebadat krna
o door kar ne ki dua allah se karnahai wo waliyo.
Assalamu Alaikum doston Lekin me to Sirf or Sirf ALLAH she hi Madat mangta hu or kishi she nahi kyonki Sabshe Phle ALLAH hi H bashaq or Aakhir bhi Bashaq ALLAH hi h Sabka Malik ALLAH hi h Bashaq ALLAH hi h bashaq
@xenomorph666x
Жыл бұрын
@Yaseen Shah एक बात बताओ क्या तुमने कुरान पढ़ी है??
@martinshah6437
Жыл бұрын
Waah ji waah main hindu dharam se hu ji lekin follow main islaam dharam ko karta hu ek baat bataao allah ko maante ho or uske rasool ko kyu nai hazrat mohammad mustafa saw kali kamli wali sarkaar ko nai maante
@KhurshidAlam-rg3md
Жыл бұрын
@@xenomorph666x TV ni ni bub in
@xenomorph666x
Жыл бұрын
@@KhurshidAlam-rg3md क्या कह रहे हो?????
@shahidkhan-rh3rz
Жыл бұрын
To fir haz bhi mat karne Jaya karo bhai kyunki uski buniyad kisne rakhi yeh bhi jan lo
or jitne bi yaha mashallah likh rahe ho tum logo me se kitne jan hai jisne quran ka tarjuma padha ho islam ki staduy ki hai din wahi ho jo dine ibrahimi h jo sb se toot kr ek Allah ke hogye the or wo mushrik nhi the tumlogo se bs itna hi kahuga ki din Allha ka h or usne quran me sb hr wo baat bta di h jo insan ke smajne ke liye aasan ho
Bhai mazaar pe q jana chahiye
Maine mazar Sharif ki lambi umra ki mannat mangi yah mannat mangna kaisa hai Chadar chadhane ka bataiye
Shahih bulhari hadees "Ap(saw) ne farmaya ke mai tumbe qabron ko paka karne aur un par baithne se manah larna hun"
3:20 🙏 mat karo allah se maango.masjid main ja kar maango. tahajjud main Maango. satkha kar k maango. jo ghar main bujurg hai unse dua karao !
@tarabegum950
Жыл бұрын
Allah se hi mangthe hai vasela k saath
@amr6634
Жыл бұрын
@@tarabegum950 ok....! Right man in wrong comment !!
@sabiraliparkar5447
4 ай бұрын
Wasila shirk hay.
@amr6634
4 ай бұрын
@@sabiraliparkar5447 wasila q . Marhum k liye karo niklo !
App allah ke vali hai app hamare liye dua ka hath utha lete hai appler allah ki raham hota hai,or appki har bat per allah ka ukam jari hota hai,dua qabul ho jati hai, aameen
@xenomorph666x
Жыл бұрын
हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह.. ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ? जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा. मगर अल्लाह फरमाता है : देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता. (सुरह जुमर, आयत नंबर 3) गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो. (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62) अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है. अल्लाह फरमाता है: और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे. (सुरह युनूस, आयत 105-106) मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे. क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है : और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते. (सुरह फातिर, आयत 22 ) ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो. (सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5) जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे. (सुरह नहल आयत नंबर 20-21) क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं. और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया : "यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया" आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे. (सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
Hum Kisi buzargan din ya wali se maddat ni mang saktia ha Yh shirakh ha
Qbron ki zirat kar sakte hai is me koi shak nahi Qabar ke andar jo koi bhi unke liye jobhi Quran ki aayaten aati hai padhe unhe bakhshe Unke liye maqfrat ki duaa kare Allha se unpar raham ke mamle ki duaa kare Aur apne aur apno ke liye Allha se masjid me ghar me jahan ho duaa mange Allha kayenat ke har zarre me maojud hai Allha hum sabko sahi samajh ata farmae aamin
Farz namaz ke baad mango
Kyon Na direct Allah se mange
Sahee
@xenomorph666x
Жыл бұрын
हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह.. ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ? जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा. मगर अल्लाह फरमाता है : देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता. (सुरह जुमर, आयत नंबर 3) गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो. (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62) अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है. अल्लाह फरमाता है: और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे. (सुरह युनूस, आयत 105-106) मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे. क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है : और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते. (सुरह फातिर, आयत 22 ) ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो. (सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5) जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे. (सुरह नहल आयत नंबर 20-21) क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं. और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया : "यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया" आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे. (सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
Hamlog enko pad ke bakshe
Kuch log harami he allah ke pyare dost valiulllah jis ka zikr qurane pak me allah farmata he vaha pe jane ki mana kahte he.valiullah se muh moda usne allah se jang ki bechare aese musalman he mazhab ko jante hi nahi or kuch b bate karte he.bhai sahab ap ka kam bahetarin he
Allah ke siwa kisi aur ko mat pukaro. Allah ne hum sabko paida kia hai. Hum sirf Allahi ki Ibadat kartein hai aur sirf Allahi se madad mangte hai.
@i_am_uzef_ff
Жыл бұрын
Are mangte ham Allah hi se he lekin wasila lagte he smja kya
@mohsinhussain8541
Жыл бұрын
कल कयामत के दिन रसूल पाक के वसिले से उमत बख्शी जाएगी
@sabiraliparkar5447
4 ай бұрын
Rasool aur pirouette Marshall me farq hota hay.
Great Jankari
@xenomorph666x
Жыл бұрын
हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह.. ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ? जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा. मगर अल्लाह फरमाता है : देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता. (सुरह जुमर, आयत नंबर 3) गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो. (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62) अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है. अल्लाह फरमाता है: और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे. (सुरह युनूस, आयत 105-106) मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे. क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है : और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते. (सुरह फातिर, आयत 22 ) ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो. (सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5) जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे. (सुरह नहल आयत नंबर 20-21) क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं. और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया : "यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया" आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे. (सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
Assalamualaikum mai shahjahan khan bhai ki baat se sehmat hun Siwae Allah ke kisi se nahi mangna chahiy quran sharif me waseele ka zikr hi nahi hai sirf Allah ke siwa kisi se nahi mangna hai quran ki tafseer Ahadees ko padhiye samajhye sunni wahabi ehle hadees ke chakkar me logon ko gumrah mat kijiye iski bhi pakad hai phir hum me aur gair quam me kya farq reh jayega Allah hum sab ko hidayat de Aameen
Astagfirullah
@xenomorph666x
Жыл бұрын
ये आदमी लोगो को सीधे सीधे shirk सिखा रहा है और जरा सी भी शर्म नही इसके चेहरे पर
Ham vasile se mangte hai
Ha hum ja tha hai or dua mang tha hai 1 yers se per meri dud kabool nhi ho rahi hai
Tum har ek se dua karte ho ham bhe har ek se maangte hi tho ham me tum me kya hi faraq.
Har masjid me mazar banva du jha mazar na hu vha namaz na pahdu kya fayda kyu ki namaz dua vha qabbol hugi Jha mazar he
Ziyaulsiddqee
Masjid kyu inhi jaye mazar par kyu jaye
Mazar me wali se dua krwane ko kahe allah se qki dene wale sirf allah hai..,.
Lekin dargah me duaa kyun mangni hai. Hame masjid me jake allah se duaa mangni chahiye.
Kiyon gumrah kar rahe ho bhole bhale logon ko kabhi ye kaha hai ki 5waqt ki namaz farz hai namaz kisi halat me maaf nahi hai kuchh yo sharm karo miya rizq ka zami allah. Maut zindagi allah ke hath izzat zillat allah deta hai mazaron ke chkkar na lagane wale lagane wale bechare unse koi puchhe jo is chkkar me nahi padte hai woh kahan ghareeb ho gaye yaad allah ke mohtaj sab hain woh tuko kiya denge
Jo musalman Dargah nshi jaate, unke chehre mein noor nahi rehta and unko Hyderabad mein PAKODE bolte hain 🤣
Maolana sahab aapne jo topi paheni hai wo bhora muslim ki ijad hai unki phechan hai Agar aap bhora muslim ko nahi jante ho to janye
Sirf Allah se mangna chahiye
@mohsinhussain8541
Жыл бұрын
हम अल्लाह से ही मांग रहे हैं लेकिन वलीयों के वसीले से मांग रहे कल कयामत के दिन रसूले पाक का वसीला काम आएगा
Kuran mein kahan latala farmata hai ki basila talash karo Surya number aur aayat number bataen
@xenomorph666x
Жыл бұрын
हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह.. ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ? जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा. मगर अल्लाह फरमाता है : देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता. (सुरह जुमर, आयत नंबर 3) गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो. (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62) अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है. अल्लाह फरमाता है: और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे. (सुरह युनूस, आयत 105-106) मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे. क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है : और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते. (सुरह फातिर, आयत 22 ) ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो. (सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5) जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है: और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे. (सुरह नहल आयत नंबर 20-21) क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं. और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया : "यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया" आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे. (सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
@mohsinhussain8541
Жыл бұрын
रसूल पाक की सुन्नत हदीश मे है
@devilboy.2691
3 ай бұрын
Quran me to KZread dekhna bhi nhi likha hua .to fir yha kiya pakdne aaya h tu ye bata .jab quran ka hawala de rha h to quran me to KZread dekha aur mobile chalna bhi nhi likha h to kiyo dekh rha Fir
Par Kuch log to kahte hai ki Allah se mango wali Allah se nahi
@ArshAlvi-zn5vl
6 ай бұрын
Bhai jo musibat me madad kare usi se mago fark itna h deta h sabko allah hi lekin koi jariya bana ke
મોબાઈલ ,,,કા,,,,નંબર કીયા હૈ,,આપ કા,,,કામ હૈ
Dargah wala nabi hai kya ya allah ka paigambar hai jo uske sadke se dua qubool hongi dargah wala khud allah ka mautaj hai dua sirf allah se
Agar magna hai Nabiyepaak ke waseele se mango peer ka waseela nahi
Ham gana karte Hain tumko kuchh yad nahin hota hai iska kya matlab hota hai kam karne
Mangne ka tarika adha Sahi bataya aur adha Galat bataya Jisko kehne se shirk hoga
Hazrat Video se kamane ka aur bhi takika hai gumra na karo kom ko
Kya huga in suver ki aualdu ka
Hazrat Kio gumra kar rahe ho kom ko
Allah se mafi manglo a yab galath hi sirf allha ke Siva koi mabud nahi hai