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Пікірлер: 17
@KiranBala-nb5ch3 ай бұрын
🙏🙏 Jai Sat Chit Anand 🙏🙏
@pratibhabaviskar8746 Жыл бұрын
जयचाीदानंद
@DATTASHIVAM5 ай бұрын
🙏💐
@biswanathsen81994 ай бұрын
জয় সচ্চিদানন্দ "মা"🌹🙏🛐
@raseelapatel7608 Жыл бұрын
Jsca 🙏 🙏 🙏 🙏 ma 🙏 💐 ♥ ❤ 💖 💕
@dindayalsingh5214 жыл бұрын
Jai sat chitanand Dadabhagwan na asim jai jai kar ho .www dadabhagwan.org
@padbibikramshrestha19904 жыл бұрын
कुछ लेविल जैसा दुज चाँद के राेशनी तक पहुँचे पर सत्य अभि बहुत फासले पर हे, श्रीकृष्ण जब गीतादाता हि नहि ताे उनका नाम ज्ञानदाता समझना हि अनर्थ व असत हे; दुसरा १८:६६ अौर ३:३५, १८:४७ का संयाेजन या समन्वय कर सत्य वचन दे पाए ताे अति सुन्दर बने, महाशया अात्मापर हि पहुँच नहि पाया जैसे मनका धर्म ,चित्तका धर्म ऐसा गीतामे कहिं वयां हि नहि मात्र देह अौर देहिका हि बिभाजन दिखाया(२:१३,१६), यह मन चित्त हाथ पैर यह सभि ताे देहका यानी शरीरका हे, अलग कहाँ ? जाे चर्मचक्षुसे दिखे वह सभि देह जनित देहसे सम्बन्धित हे ताे मन चित्त इच्छा जाे चर्मचक्षुसे दिखनेवाला नहि मात्र एहशास किए जानेवाला अात्मा के विषय का हे। प्रश्न कर्ताका जिज्ञासा अौर उत्तर कुछ हटकर अाया समाधान हो न सका कारण जाे अपनेमे हि नहि वह दे पाए कैसे ? महाेदया वहि तमसभक्ति से जुडा हो नहि सका हे, जबतक तमसभक्ति से छुट नहि जाते तबतक अात्मज्ञान सम्भव हि नहि। यहि तमसभक्ति वालेका समझ पतनकि अाेर जाते हे, अात्माज्ञान उत्थान कि अाेर दाेनाे एकापस मे विपरीत मार्गका हे ताे एकसाथ हो पाए कैसे ? ज्ञान कहता हे श्रीकृष्ण गीतादाता हे हि नहि, गीताका भगवानुवाच वाला हरश्लाेक इसका प्रमाण हे, अौर तमसभक्ति इसकठनका बिराेध मे हे जिसका गीताहि बिराेधि हे उसकाे काेहि किसि से प्रमाणिक अाधार देनेमे सामर्थ्य नहि, कथाका जाे किसि द्वारा कथिहुइ हे इतिहास नहि। चरित्र व लिलाकथा अौर भागवतपुराण का कथावाला श्रीकृष्ण अौर महाभारतकथाका श्रीकृष्ण एक नहि पृथक यानी अलग अलग हे, एक दुसरेमे मेल नहि अर्थात नाम अौर गतिविधि हि मेल हे पर दृश्य व घटनामे अति अन्तर हे। फिर महाभारत भि कथा हि हे इतिहास नहि हे। यह अन्तर भि किसिकि भेजामे उतरे नहि हे। गीता कि हरेक अध्याय कि अन्तमे जाे पुष्पिका हे उसमे इस रहस्यका पर्दाफाश किया हे " ब्रह्मबिद्यायां याेगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन संवादे " यह दाेनाे मात्र संवाद का पात्र हे किरदार नहि वैसे ताे संजयका भि संवाद अर्जुनसे कम नहि उसका नाम पुष्पिकामे नहि क्याें ? ऐसे बहुतसा रहस्य छुपा हे जाे अाजतक खुले नहि, उधारहणार्थ १८:७६ का श्लोक जाे संजयउवाच हे अौर १८:६८ से १८:७१ तकका श्लोक भि विवादास्पद हे, ऐसे वहुतसा गीताका श्लोक हि चिल्लाचिल्ला कर कहरहे हे कि श्रीकृष्ण गीतादाता नहि भक्तिअर्थसे हि, ज्ञानअर्थसे ताे १६:१,२,३ अौर १६:४,७-२१ ताे मुख्य हे अौर अन्य अनेक हे। महाेदया का उपनाम मे अात्मज्ञानी का अाना भि तमसभक्ति सा अनर्थका हि हे। जाे देह अौर देहिका भेदका जानकार दिखे नहि। अात्मा व परमात्माका भेद क्या जाने ? सत्य हे जाे काेहि पचा नहि सकते बहुत अान्तरिक बल या शक्ति होना जरुरि हे। चिन्तन हे कमेन्ट नहि, धन्यवाद !!!
@rajukaushalhp83115 жыл бұрын
Nice line👏👏👏🌹🌹🌹🌹🌹
@HetvadeepsinhParmar-ou6sl Жыл бұрын
ડો
@drarvindkumarjain10 жыл бұрын
beautifully presented the subject and really it has a good teachings given by mother NIRUMA. JAI HO
Пікірлер: 17
🙏🙏 Jai Sat Chit Anand 🙏🙏
जयचाीदानंद
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জয় সচ্চিদানন্দ "মা"🌹🙏🛐
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कुछ लेविल जैसा दुज चाँद के राेशनी तक पहुँचे पर सत्य अभि बहुत फासले पर हे, श्रीकृष्ण जब गीतादाता हि नहि ताे उनका नाम ज्ञानदाता समझना हि अनर्थ व असत हे; दुसरा १८:६६ अौर ३:३५, १८:४७ का संयाेजन या समन्वय कर सत्य वचन दे पाए ताे अति सुन्दर बने, महाशया अात्मापर हि पहुँच नहि पाया जैसे मनका धर्म ,चित्तका धर्म ऐसा गीतामे कहिं वयां हि नहि मात्र देह अौर देहिका हि बिभाजन दिखाया(२:१३,१६), यह मन चित्त हाथ पैर यह सभि ताे देहका यानी शरीरका हे, अलग कहाँ ? जाे चर्मचक्षुसे दिखे वह सभि देह जनित देहसे सम्बन्धित हे ताे मन चित्त इच्छा जाे चर्मचक्षुसे दिखनेवाला नहि मात्र एहशास किए जानेवाला अात्मा के विषय का हे। प्रश्न कर्ताका जिज्ञासा अौर उत्तर कुछ हटकर अाया समाधान हो न सका कारण जाे अपनेमे हि नहि वह दे पाए कैसे ? महाेदया वहि तमसभक्ति से जुडा हो नहि सका हे, जबतक तमसभक्ति से छुट नहि जाते तबतक अात्मज्ञान सम्भव हि नहि। यहि तमसभक्ति वालेका समझ पतनकि अाेर जाते हे, अात्माज्ञान उत्थान कि अाेर दाेनाे एकापस मे विपरीत मार्गका हे ताे एकसाथ हो पाए कैसे ? ज्ञान कहता हे श्रीकृष्ण गीतादाता हे हि नहि, गीताका भगवानुवाच वाला हरश्लाेक इसका प्रमाण हे, अौर तमसभक्ति इसकठनका बिराेध मे हे जिसका गीताहि बिराेधि हे उसकाे काेहि किसि से प्रमाणिक अाधार देनेमे सामर्थ्य नहि, कथाका जाे किसि द्वारा कथिहुइ हे इतिहास नहि। चरित्र व लिलाकथा अौर भागवतपुराण का कथावाला श्रीकृष्ण अौर महाभारतकथाका श्रीकृष्ण एक नहि पृथक यानी अलग अलग हे, एक दुसरेमे मेल नहि अर्थात नाम अौर गतिविधि हि मेल हे पर दृश्य व घटनामे अति अन्तर हे। फिर महाभारत भि कथा हि हे इतिहास नहि हे। यह अन्तर भि किसिकि भेजामे उतरे नहि हे। गीता कि हरेक अध्याय कि अन्तमे जाे पुष्पिका हे उसमे इस रहस्यका पर्दाफाश किया हे " ब्रह्मबिद्यायां याेगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन संवादे " यह दाेनाे मात्र संवाद का पात्र हे किरदार नहि वैसे ताे संजयका भि संवाद अर्जुनसे कम नहि उसका नाम पुष्पिकामे नहि क्याें ? ऐसे बहुतसा रहस्य छुपा हे जाे अाजतक खुले नहि, उधारहणार्थ १८:७६ का श्लोक जाे संजयउवाच हे अौर १८:६८ से १८:७१ तकका श्लोक भि विवादास्पद हे, ऐसे वहुतसा गीताका श्लोक हि चिल्लाचिल्ला कर कहरहे हे कि श्रीकृष्ण गीतादाता नहि भक्तिअर्थसे हि, ज्ञानअर्थसे ताे १६:१,२,३ अौर १६:४,७-२१ ताे मुख्य हे अौर अन्य अनेक हे। महाेदया का उपनाम मे अात्मज्ञानी का अाना भि तमसभक्ति सा अनर्थका हि हे। जाे देह अौर देहिका भेदका जानकार दिखे नहि। अात्मा व परमात्माका भेद क्या जाने ? सत्य हे जाे काेहि पचा नहि सकते बहुत अान्तरिक बल या शक्ति होना जरुरि हे। चिन्तन हे कमेन्ट नहि, धन्यवाद !!!
Nice line👏👏👏🌹🌹🌹🌹🌹
ડો
beautifully presented the subject and really it has a good teachings given by mother NIRUMA. JAI HO
नमस्ते बहुत सुन्दर तरीके से समझाया है
jsca , very nice
Nice
Jsca : नर नारायण
P, Pu. Niruma koti koti vadan
JSCA
@kiransoya6685
6 жыл бұрын
Jsca