बालकाण्ड दोहा नं.95,96 समुझि महेस समाज सब जननी जनक मुसुकाहिं l

समुझि महेस समाज सब जननी जनक मुसुकाहिं l
बाल बुझाये बिबिध बिधि निडर हौंहुडर नाहि ll

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