13 मई वैशाख महात्म्य अध्याय 20 || Vaishakh Mahatmya Ki Katha || वैशाख मास की कथा

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वैशाख मास को ब्रह्मा जी ने वैशाख श्रेष्ठ मास बतलाया है जो शेषशायी भगवान् विष्णु को सदा प्रिय है। सब प्रकार के दान से जो पुण्य प्राप्त होता है और सब तीर्थों में जो फल होता है, उसी को मनुष्य वैशाख मास में केवल जल दान करके प्राप्त कर लेता है। अगर कोई मनुष्य किसी कारणवश जल दान करने में असमर्थ है, तो वह दूसरों को वैशाख मास में जल दान करने का महत्त्व समझा कर पुण्य प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य वैशाख में सड़क पर यात्रियों के लिये प्याऊ लगाता है, वह विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। जिसने प्याऊ लगाकर रास्ते के थके-माँदे मनुष्यों को सन्तुष्ट किया है, उसने ब्रह्मा, विष्णु महेश , सभी देवी देवताओं, पितरों तथा ऋषि यों आदि को सन्तुष्ट कर लिया है। राजन्! वैशाख मास में जल की इच्छा रखने वाले को जल, छाया चाहने वाले को छाता और पंखे की इच्छा रखने वाले को पंखा देना चाहिये। राजेन्द्र! प्यासे को पानी पिलाने मात्र से ही दस हजार राजसूय यज्ञों का फल प्राप्त होता है। धूप और परिश्रम से पीड़ित व्यक्ति को जो पंखा डुलाकर हवा करता है, वह मात्र उतने से ही निष्पाप होकर भगवान्‌ का पार्षद हो जाता है। जो मार्ग से थके हुए श्रेष्ठ द्विज को वस्त्र से भी हवा करता है, वह उतने से ही मुक्त हो भगवान् विष्णु का सायुज्य प्राप्त कर लेता है। जो शुद्ध चित्त से ताड़ का पंखा दान में देता है, वह सब पापों का नाश करके ब्रह्मलोक को जाता है। जो विष्णु प्रिय वैशाख मास में पादुका दान करता है, वह यमदूतों का तिरस्कार करके विष्णु लोक में जाता है। जो मार्ग में अनाथों के ठहरने लिये विश्राम गृह बनवाता है, उसके पुण्य-फल का वर्णन किया नहीं जा सकता। मध्याह्न में आये हुए अतिथि को यदि कोई भोजन दे, तो उसके फल का अन्त नहीं है। राजन्! अन्नदान मनुष्यों को तत्काल तृप्त करने वाला है, इसलिये संसार में अन्न के समान कोई दान नहीं है। वैशाख मास में विविध वस्तुओं जैसे सोने के लिये खाट, कुश, चटाई और कम्बल, लस्सी, दही, मट्ठा, खाँड़ , चावल, गोघृत, फल, शर्बत, पलंग, कपड़े और बिछावन के दान का विशेष महत्त्व है |

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